Sunday, March 24, 2019

जुंबिशें - - -ग़ज़ल


ग़ज़ल

याद ए माज़ी को तो, बेहतर है भुलाए रखिए,
हाल शीशे का है, पत्थर से बचाए रखिए.

दोस्ती, यारी, नज़रियात, मज़ाहिब, हालात,
ज़ेहन व् दिल पे, न बहानों को बिठाए रखिए.

मैं फ़िदा आप पे कैसे, जो बराबर हैं सभी,
ऐ मसावाती मुजाहिद! मुझे पाए रखिए.

सात पुश्तों से ख़ज़ाना, ये चला आया है,
सात पुश्तों के लिए माँ, इसे ताए रखिए.

आबला पाई भुला बैठी है, राहें सारी,
आप कुछ रोज़, चरागों को बुझाए रखिए.

सच की किरनों से, जहाँ में, लगे न आग कहीं,
आतिशे दिल अभी "मुंकिर" ये बुझाए रखिए.

یادِ ماضی کو تو بہتر ہے بُھلاے رکھئے 
حال شیشے کا ہے، پتھر سے بچاۓ رکھئے٠

دوستی، یاری، نظریات، مذاھب، حالات 
ذہن و دل پر نہ گواہوں کو بٹھاۓ رکھئے٠

میں فدا آپ پر کیسے، جو برابر ہیں سبھی 
ائے مساواتی مجاہد، مجھے پایے رکھئے٠ 

سات پشتوں کا خزانہ یہ چلا آیا ہے 
سات پشتوں کے لئے ماں، اسے تائے رکھئے٠

آبلہ پائی بھلا بیٹھی ہے را ہیں ساری
آپ کچھ روز چراغوں کو بُجھاۓ رکھئے٠

سچ کی کرنوں سے جہاں میں نہ لگے آگ کہیں 
آتشِ دل ابھی منکر، یہ دباۓ رکھئے٠ 

2 comments:

  1. बहुत कमाल के शेर हैं राजेन्द्र जी ... हर शेर की ताजगी दिल को छू रही है ...

    ReplyDelete