रुबाईयाँ
तहरीर शुदा देखे अजाबात ए अजीब ,
पढ़ पढ़ के धड़कते हैं, दिल व् जान ग़रीब,
सहमें हुए बैठे हैं बेचारे क़ारी.
क्या खूब डराता है उन्हें उनका मुजीब.
تحریر شدہ دیکھے ، عذابا تِ عجیب
پڑھ پڑھ کے دھڑکتے ہیں ، دل و جان غریب
سہمیں ہوئے بیٹھے ہیں ، بِچارے قاری
کیا خوب ڈراتا ہے ، اُنہیں اُنکا مجیب ٠
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मय, हूर, गुलामान, खराबात ए नसीब,
नहरों पे सजी जन्नातें देता है नजीब,
बस देर है ईमान के ले आने की,
क्या खूब रिझाता है, इन्हें इनका रक़ीब.
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مے، حور، غلامان، خراباتِ نصیب
نہروں پہ سجی جنّتیں ، دیتا ہے نجیب
بس دیر ہے ایمان کو، لے آنے کی
کیا خوب ریجھاتا ہے ، اُنہیں اُنکا رقیب ٠
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मुंह, आँख, समाअ सी कर सोया मुनकिर,
इक लंबी सज़ा जी कर सोया मुनकिर,
बस आँख लगी है न जगाना उसको,
ग़म खा के लहू पी कर सोया मुनकिर.
منہہ، آنکھ ، سماع سی کے سویا منکر
اک لمبی سزا جی کر ، سویا منکر
بس آنکھ لگی ہے ، نہ جگانا اسکو
غم کھا کے ، لہو پی کے، سویا 'منکر٠
वाह
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