Tuesday, March 26, 2019

जुंबिशें - - - रुबाईयाँ



  रुबाईयाँ
तहरीर शुदा देखे अजाबात ए अजीब ,
पढ़ पढ़ के धड़कते हैं, दिल व् जान ग़रीब,
सहमें हुए बैठे हैं बेचारे क़ारी.
क्या खूब डराता है उन्हें उनका मुजीब.

تحریر شدہ دیکھے ، عذابا تِ عجیب 
پڑھ پڑھ کے دھڑکتے ہیں ، دل و جان غریب 
سہمیں ہوئے بیٹھے ہیں ، بِچارے قاری 
کیا خوب ڈراتا  ہے ، اُنہیں اُنکا مجیب ٠ 

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मय, हूर, गुलामान, खराबात ए नसीब,
नहरों पे सजी जन्नातें देता है नजीब,
बस देर है ईमान के ले आने की,
क्या खूब रिझाता है, इन्हें इनका रक़ीब.
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مے، حور، غلامان، خراباتِ نصیب 
نہروں پہ سجی جنّتیں ، دیتا ہے نجیب 
بس دیر ہے ایمان کو، لے آنے کی 
کیا خوب ریجھاتا ہے ، اُنہیں اُنکا رقیب ٠ 

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मुंह, आँख, समाअ सी कर सोया मुनकिर,
इक लंबी सज़ा जी कर सोया मुनकिर,
बस आँख लगी है न जगाना उसको,
ग़म खा के लहू पी कर सोया मुनकिर.

منہہ، آنکھ ، سماع سی کے سویا منکر
اک لمبی سزا جی کر ، سویا منکر
بس آنکھ لگی ہے ، نہ جگانا اسکو 
غم کھا کے ، لہو پی کے، سویا 'منکر٠ 

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