Friday, August 31, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 45 उन्नति शरणम् गच्छामि



45

उन्नति शरणम् गच्छामि

गौतम था बे नयाज़ ए अलम1, जब बड़ा हुवा,
महलों की ऐश गाह में, इक ख़ुद कुशी किया.
पैदा हुवा दोबारा, हक़ीक़त की कोख से,
तब इस जहाँ के क़र्ब2 से, वह आशना हुवा.

देखा ज़ईफ़3 को तो, हुवा ख़ुद नहीफ़4 वह,
रोगियों को देख के, बीमार हो गया.
मुर्दे को देख कर तो, वह मायूस यूँ हुवा,
महलों की ऐश गाह से, संन्यास ले लिया.

बीवी की चाहतों से, रुख अपना मोड़ कर,
मासूम नव निहाल को भी, तनहा छोड़ कर,
महलों के क़ैद ख़ानों से, पाता हुवा नजात,
जंगल में जन्म पाया था, जंगल को चल दिया.

असली ख़ुदा तलाश वह, करता रहा वहां,
कोई  ख़ुदा मिला न उसे, यह हुवा ज़रूर
वह इन्क़्शाफ़5 सब से बड़े, सच का कर गया,
"दिल में है अगर अम्न, तो समझो  ख़ुदा मिला".

सौ फ़ीसदी था सच, जो यहाँ तक गुज़र गया,
अफ़सोस का मुक़ाम है, जो इसके बाद है.

शहज़ादे के मुहिम की, शुरुआत यूँ हुई,
तन पोशी, घर, मुआश बतर्ज़े-गदा6 हुई.

दर अस्ल थी मुहिम, हो  ख़ुदाओं का सद्दे-बाब7,
मुहमे-अज़ीम8 थी, कि जो राहें भटक गई,
राहों में इस अज़ीम के, जनता निकल पड़ी,
उसने महेल को छोड़ा था, और इसने झोपड़ी.

शीराज़ा9 बाल बच्चों के, घर का बिखर गया,
आया शरण में इसके जो, वह भिक्षु बन गया.
मानव समाज कि धुरी, जो डगमगा गई.
मेहनत कशों पे और, क़ज़ा10 दूनी हो गई.

काहिल अमल फ़रार, ये हिन्दोस्तां हुवा,
जद्दो-जेहद का देवता, चरणों में जा बसा,
तामीर11 क़ौम के रुके, सदियाँ गुज़र गईं,
'मुंकिर' ख़ुमार बुत का ये, छाया है आज तक,

माज़ी गुज़र गया है, बुरा हाल है बशर.
आबादियों को खाना, न पानी है मयस्सर ,
ज़ेरे सतर ग़रीबी12, जिए जा रहे हैं हम,
बानी महात्मा की,  पिए जा रहे हैं हम.

१-दुःख से अज्ञान 2 -पीडा ३-बृध ४-कमज़ोर ५-उजागर करना ६-भिखारी की तरह जीवन यापन
 ७-समाप्त होना ८-महान ९-प्रबंधन १०-मौत ११-रचना १२-गरीबी रेखा

کٹورا شرنم گچھچھامی


،شہزادہ بے نیازِالم جب بڑا ہوا 
،محلوں کی عیش گاہ میں اک خود کشی کیا
،پیدا ہوا دوبارہ، حقیقت کی کوکھ سے 
تب اس جہاں کے قَرب سے وہ آشنا ہوا ٠

،دیکھا ضعیف کو تو ، ہوا خود نحیف وہ 
،بیماریوں کو دیکھ کے ، بیمار ہو گیا 
،مُردے کو دیکھ کر تو، وہ مایوس یوں ہوا 
محلوں کی عیش گاہ سے سنیاس لے لیا ٠ 

،بیوی کی توجہہ سے ، رخ اپنا موڑکے 
،معصوم نو نہال کو بھی تنہا چھوڑ کے 
،محلوں کے قید خانے سے لیتا ہوا نجات 
جنگل میں جنم پایا تھا ، جنگل کو چل دیا ٠

،اصلی خدا تلاش وہ کرتا رہا وہاں 
،کوئی خُدا شُدا نہ ملا ، یہ ہوا ضرور 
،وہ انکشاف سب سے بڑے سچ کا کر گیا 
دل میں اگر ہے سچ تو یہی ہے خدا کا نور٠

،سو فی صدی تھا حق ، جو یہاں تک گزر گیا
،افسوس کا مقام ہے ، جو اسکے بعد ہے 
،شہزادے کی مہم کی ، شروعات یوں ہی 
تن پوشی ، گھر،معاش ، بطرزِ گدا ہوئی ٠

،مبہم خدا کی ذات سے فارغ ہوا سماج 
،لیکن وہ کار سازی کی راہیں بھٹک گیا 
،را ہوں میں اس فقیر کے ، جنتا نکل پڑی 
اُس نے محل کو چھوڑا تھا اور اِسنے جھوپڑی ٠

،شیرازہ بال بچوں کے گھر کا بکھر گیا 
،آیا شرن میں اُسکے جو ، وہ بھکہچھو بن گیا 
،ڈھانچہ معاشرے کا کھڑا ، چرمرا گیا 
محنت کشوں پہ اور قضا دونی ہو گئی ٠ 

،کاحل ، عمل فرار ، یہ ہندوستاں ہوا 
،جد و جہد کا کارواں شرنوں میں جا بسا 
،تعمیر قوم کی رُکے صدیاں گزر گئیں
منکر خُمار بُت کا یہ چھایا ہے آج تک٠  

،ماضی بُرا رہا ہے ، بُرا حال ہے بشر 
،آبادیوں کو کھانا ، نہ پانی ہے پیٹ بھر 
،زیرِ غریبی سطر ، جئے جا رہے ہیں ہم 
بانی مہاتما کی پئے جا رہے ہیں ہم ٠ 

No comments:

Post a Comment