Friday, August 17, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 31 हिंदुत्व


31

  हिंदुत्व

सदियों से गढ़ते गढ़ते, गढ़ाया है ये हिदुत्व,
पलकों को मूंदते नहीं, आया है ये हिंदुत्व.

तबलीग़1, जोर व् ज़ुल्म, जिहादों से दूर है,
सद भावी आचरण से, नहाया है ये हिंदुत्व.

तारीख़2  का लिहाज़ है, जुग़राफ़िया3  का पास,
आब ओ हवा में अपने, नहाया है ये हिंदुत्व.

नदियों में तैरता है, पहाड़ों में बसा है,
सूरज को, चाँद तारों को, भाया है ये हिंदुत्व.  

आओ मियाँ कि देखें, ज़रा घुस के इसका हुस्न,
पुरखों का है, कहाँ से पराया है ये हिंदुत्व. 

क़द्रें4 नई समेट के, चलता है डगर पे,
हाँ, इर्तेकाई5 हुस्न की, काया है ये हिंदुत्व.

तहजीब ए अर्ज़6 की ये, मुसलसल हयात7 है,
गर नाप तौल हो, तो सवाया है ये हिंदुत्व.

अरबों के फ़ल्सफ़े हि, न भाएँ ख़मीर8 को,
'मुंकिर' को भाए हिन्द, सुहाया है ये हिंदुत्व.

1-प्रचार 2-इतिहास 3-भूगोल 4-मान्यताएं 5-रचना 6-भूभाग 7-बानगी 

ہندوتو 

،صدیوں سے گڑھتے گڑھتے ، گڑھایا ہے یہ ہندوتو 
.پلکوں کے جھپکتے نہیں آیا ہے یہ ہندوتو

،تبلیغ جور و ظلم ، جہادوں سے دور ہے 
.سد بھاوی آچرن سے نہایا ہے یہ ہندوتو

،تاریخ کا لحاظ ہے ، جغرافیہ کا پاس 
.آب و ہوا میں اپنے، نہایا ہے یہ ہندوتو

،ندیوں پہ تیرتا ہے ، پہاڑوں پہ بسا ہے 
.سورج کو چاند تاروں کو، بھا یا ہے یہ ہندوتو.

،آؤ میاں کہ دیکھیں ذرا گھس کے اس کا حسن 
.پرکھوں کا ہے ، کہاں سے پرایا ہے یہ ہندوتو

،قدریں نی سمیٹ کے ، چلتا ہے دگر پہ 
.ہاں ! ارتقائی حسن کا کایا ہے یہ ہندوتو.

،تہذیب ارض کی یہ مسلسل حیات ہے 
.گر ناپ تول ہو تو سوایا ہے یہ ہندوتو

،عربوں کے فلسفے ہی ، نہ بھا یں ضمیر کو 
.منکر کو بھاۓ ہند ، سھایا ہے یہ ہندوتو

No comments:

Post a Comment