Saturday, August 4, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 18 मंसूरी1 आईना



18

मंसूरी1 आईना

दस्तख़त किसके हैं, मख़लूक़ की शक्ल ओ सूरत?
किसकी तहरीर है, फ़ितरत की ये नक़्ल ओ हरकत?

इसकी तशरीह4 किया करते हैं, पंडित,मुल्ला,
अपनी दूकानें लिए बैठे हैं, बुत और अल्लाह.

खोज 'उसकी'अगर जो चाहता है, ख़ुद में कर,
'उसके' हर राज़ का हमराज़ है, ये तेरा सर.

राएगां जाते हैं, तेरे ये शबो-रोजी सुजूद ,
था अनल हक़ की सदाओं में किसी हक़ का वजूद.

ख़ुद को पहचान तू ,महकूमी को दुश्नाम ,
ख़ुद को पा जाए तो, जीता हुआ इनआम समझ.

१-एक अरबी संत जिसने स्वयम में इश्वर ईश्वर होने का एलन किया २-प्राणि.
३-गति-विधि ४-व्याख्या 5 -व्यर्थ 6 - सजदे ७-गुलामी ८-गाली

منصوری آئینہ

،دستخط کس کے ہیں مخلوق کی شکل و صررت
کس کی تحریر ہے ، فطرت کی یہ نقکل و حرکت؟

،اس کی تشریح کیا کرتے ہیں پنڈت مُللہ
اپنی دوکانیں لئے بیٹھے ہیں ، بُت اور اللہ٠ 

،کھوج اس کی اگر جو چاہتا ہے خود میں کر
اسکے ہر راز کا ہمراز ہے یہ تیرا سر٠ 

،رائیگاں جاتے ہیں تیرے یہ شب روزی سجود
تھا انالحق کی صداؤں میں کسی حق کا وجود٠ 

،خود کو پہچان تو محکومی کو دُشنام سمجھ 
خود کو پا جاۓ تو جیتا ہوا انعام سمجھ ٠ 

No comments:

Post a Comment