Tuesday, April 24, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 39



39

तोहमत शिकस्ता पाई , मुझ पर मढ़े हो तुम,
राहों के पत्थरों को, हटा कर बढ़े हो तुम?

कोशिश नहीं है, नींद के आलम में दौड़ना,
बेदारियों की शर्त को, कितना पढ़े हो तुम?

बस्ती है डाकुओं की, यहाँ लूट के ख़िलाफ़ ,
तक़रीर ही गढ़े, कि जिसारत गढ़े हो तुम?

अलफ़ाज़ से बदलते हो, मेहनत कशों के फल,
बाज़ारे हादसात में, कितने कढ़े हो तुम.

इंसानियत के फल हों? मज़ाहिब के पेड़ में,
ये पेड़ है बबूल का, जिस पे चढ़े हो तुम.

"मुंकिर" जो मिल गया, तो उसी के सुपुर्द हो,
ख़ुद को भी कुछ तलाशो, लिखे और पढ़े हो तुम.

शिकस्ता पाई=सुस्त चाल

***

،تہمت شکستہ پائی ، مُجھ پر مڑھے ہو تم 
راہوں کے پتھروں کو، ہٹا کے بڑھے ہوتم ؟

،کاوش نہیں ہے نیند کے عالم میں دوڑنا
بیداریوں کی شرط کو کتنا پڑھے ہو تم؟ 

،بستی ہے ڈاکووں کی، یہاں لوٹ کے خلاف 
تقریر ہی گڑھے، کہ جسارت گڑھے ہو تم؟

،الفاظ سے بدلتے ہو، محنت کشوں کے پھل 
بازارِ حادثات میں کتنے کڑھے ہو تم٠ 

انسانیت کے پھل ہوں، مذاہب کی ڈال میں؟ 
یہ پیڑ ہے ببول کا، جس پر چڑھے ہو تم٠ 

،منکر جو مل گیا تو، اُسی کے سُپُرد ہو 
خود کو بھی کُچھ تلاش کرو، گر پڑھے ہو تم٠ 

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