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जिस तरह से तुम दिलाते हो, ख़ुदाओं का यक़ीं,
उस तरह से और बढ़ जाती है, शुबहों की ज़मीं.
है ये भारत भूमि, फूलो और फलो पाखंडियो,
मिल नहीं सकती शरण, संसार में तुम को कहीं.
नंगे, गूंगे संत के, मैले कुचैले पाँव पर,
हाय रख दी है, तुम ने, क्यूँ ये इंसानी जबीं.
गर है माज़ी के तअल्लुक़ से ये माथे की शिकन,
तब कहाँ बच पाएँगे, इमरोज़ ओ फ़र्दा1 के अमीं.
नन्हीं नन्हीं नेकियों, कमज़ोर सी बदियों के साथ,
कट गई यह ज़िंदगी इन पे लगाए दूरबीं.
हो अमल जो भी हमारा, दिल भी इस के साथ हो,
है दुआ तस्बीह ए मुंकिर, क्यूं मियाँ पढ़ते नहीं.
*जबीं=सर 1 इमरोज़ ओ फ़र्दा =आज और कल
،جِس طرح سے تم دِلاتے ہو خداؤں کا یقیں
اِ س طرح سے اور بڑھ جاتی ہے شُبہوں کی زمیں٠
،ہے یہ بھارت بھومی، پھولو اور پھلو پاکھنڈ یو!
مِل نہیں سکتی شرن، سنسار میں تم کو کہیں٠
،ننگے گونگے سنت کے، میلے کُچیلے پاؤں پر،
ہاۓ کیوں رکھ دی ہے تم نے، اپنی انسانی جبیں٠
،گر ہے ماضی کے تعلّق سے، یہ ماتھے کی شکن،
تب کہاں بچ پاےنگے اِمروز و فردہ کے امیں٠
،ننہیں ننہیں نیکیوں، کمزور سی بدیوں کے ساتھ،
کٹ گئی یہ زندگی، اِن پر لگاۓ دور بیں٠
''،ہو عمل جو بھی ہمارا، دل بھی اِسکے ساتھ ہو "
ہے دُعا، تسبیح منکر، کیوں مِیاں لیتے نہیں٠
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