Friday, April 13, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 28



28

दाग़ सारे धुल गए तो, इस जतन से क्या हुवा,
थोड़ा सा पानी भी रख, ऐ दूध का धोया हुवा.

ज़ेहनी बीमारी पे शक करना है, जैसे फ़र्द ए जुर्म,
अंधी और बहरी अक़ीदत, पे है हक़ रोया हुवा.

थी सदा पुर जोश कि, जगते रहो, जगते रहो,
डाकुओं की सरहदों पर, होश था खोया हुवा.

लग़ज़िशों1 की परवरिश में, पनपा काँटों का शजर,
बच्चों पर इक दिन चुभेगा, आप का बोया हुवा.

उसकी आबाई किताबों, से जो नावाक़िफ़ हुवा,
देके जाहिल का लक़ब, उस से ख़फ़ा मुखिया हुवा.

भीड़ थामे था अक़ीदत, का मदारी उस तरफ़,
था इधर तनहा मुफ़क्किर2 इल्म पर रोया हुवा.

1 ग़लती 2 बुद्धि जीवी

،داغ سارے دُھل گئے تو اس جتن سے کیا ہوا 
تھوڑا سا پانی بھی رکھ ، اے دُودھ کا دھویا ہوا٠

،زہنی بیماری پہ شک کرنا ہے، جیسے فردِ جرم 
اندھی اور بہری عقیدت، میں ہے حق کھویا ہوا٠ 

،تھی مسلسل اک صدا، جگتے رہو، جگتے رہو 
ڈاکُووں کی سرحدوں پر، ہوش تھا کھویا ہوا٠ 

،لغزشوں کی پرورش میں، پنپا کانٹوں کا شجر
بچوں کو اک دن چُبھیگا، آپ کا بویا ہوا٠ 

،بھیڑ تھامے تھا عقیدت کا مداری، اُس طرف 
تھا اِدھر تنہہ مفککر، علم پر رویا ہوا٠ 


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