Thursday, April 19, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 34



34

ख़िरद का मशविरा है, ये कि अब ग़लत निबाह है,
दलील ए दिल ये कह रही है, उस में उसकी चाह है.

मुक़ाबले में है ज़बां कि क़ादिरुल कलाम है,
सलाम आइना करे है, सब जहाँ सियाह है.

ज़मीर की रज़ा है गर, किसी अमल के वास्ते,
बहेस मुबाहसे जनाब, उस पे ख़्वाह मख़्वाह है.

लहू से सींच कर तुम्हारी खेतियाँ, अलग हूँ मैं,
किसी तरह का मशविरह, न अब कोई सलाह है.

नदी में तुम रवाँ दवाँ , कभी थे मछलियों के संग ,
बला के दावेदार हो, समन्दरों की थाह है.

तलाश में वजूद के, ये ज़िन्दगी तड़प गई,
फ़ुज़ूल का ये क़ौल है, कि चाह है तो राह है.

*खिरद=विवेक * व्यर्थ *क़दिरे कलाम =भाषाधिकार



،خرد کا مشورہ ہے یہ، کہ اب غلط نباہ ہے 
دلیل دل کی کہرہی ہے، اُس میں میری چاہ ہے٠ 

،مقابلے میں ہے زباں، کہ قادرالکلام  ہے 
سوال آئینہ کئے ہے، سب جہاں سیاہ ہے٠ 

،ضمیر کی رضا ہے گر، کسی عمل کے واسطے 
بحس مباحسا جناب، اُس پہ خواہ مخواہ ہے٠ 

،لہو سے سینچ کر، تمہاری کھیتیاں الگ ہوں میں 
کسی طرح کا مشورہ، نہ اب کوئی صلاح ہے٠ 

،ندی میں تم رواں دواں، کبھی تھے مچھلیوں کے سنگ  
بلا کے دعوے دار ہو، سمندروں کی تھاہ ہے٠ 

،تلاش میں وجود کے یہ زندگی تڑپ گئی
.فضول کا یہ قول ہے کہ چاہ ہے تو راہ ہے 

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