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अपने ही उजालों में, जिए जा रहा हूँ मैं,
घनघोर घटाओं को, पिए जा रहा हूँ मैं.
होटों को सिए, हाथ उठाए है कारवाँ,
दम नाक में रहबर के, किए जा रहा हूँ मैं.
मज़हब के हादसात, पिए जा रहे हो तुम,
बेदार हक़ायक़ को, जिए जा रहा हूँ मैं.
इक दिन ये जनता फूंकेगी, धर्मों कि दुकानें,
इसको दिया जला के, दिए जा रहा हूँ मैं.
फिर लौट के आऊंगा, कभी नई सुब्ह में,
तुम लोगों कि नफ़रत को, लिए जा रहा हूँ मैं.
फिर चाक न कर देना, सदाक़त के पैरहन,
"मुंकिर" का ग़रेबान सिए जा रहा हूँ मैं.
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،اپنے ہی اُجالوں میں جئے جا رہا ہوں میں
گھنگھور گھٹاؤں کو پئے جا رہا ہوں میں٠
،ہوٹوں کو سئے، ہاتھ اُٹھاے ہے کارواں
دم ناک میں رہبر کے کئے جا رہا ہوں میں٠
،مسلک کے حوادث کو، پئے جا رہے ہو تُم
بیدار حقایق کو، جئے جا رہا ہوں میں٠
،مذہب کے تجارت کو جلا دیگا وقت نو
اک شمع قیادت کی دئے جا رہا میں٠
،پھر لوٹ کے آؤنگا ، کبھی ہوگی صبحِ نو
تم لوگوں کی نفرت کو لئے جا رہا ہوں میں٠
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