Tuesday, April 17, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 32



32

मय्यत का मेरी आग या दरिया हो ठिकाना,
तुम खाता बही लेके, मियाँ क़ब्र में जाना. 

पहले तो वज़ू और रुकुअ तक में फसाना,
मैं फंस जो गया तो मुझे उंगली पे नचाना.

इंसान का है ज़िक्र मवेशी का नहीं है,
लाखों को हांकता है, यहाँ फ़र्द ए सयाना.

है ग़िलमा के तोहफ़े की तलबगार इमामत,
हुजरे में मसाजिद के न बच्चों को पढ़ाना.

अपनी ख़ुशी के रोड़े हटा ले तो मैं चलूँ ,
जिन रास्तों पर चलने को कहता है ज़माना.

अल्ला मियां की ज़ात घसीटे है बहस में,
दर अस्ल मेरी ज़ात है, ज़ाहिद का निशाना.

،میّت کا میری آگ یا، دریہ ہو ٹھکانا 
تُم کھاتا بہی لیکے، میاں قبر میں جانا٠  

،پہلے تو وضو اور رُقوع، تک ہی پھسانا
میں پھنس جو گیا تو، مجھے اُنگلی پہ نچانا٠  

،یہ ذکر ہے انساں، مویشی کا نہیں ہے
لاکھوں کو ہانکتا ہے، یہاں فردِ شیانا٠  

،ہے غلمه کے تحفہ کی، طلب گار اِمامت
حجرے میں مساجد کے، نہ بچوں کو پڑھانا٠  

،اپنی خوشی کے روڑے، ہٹا لے تو میں چلووں
جِن راستوں پہ چلنے کو، کہتا ہے زمانہ٠  

،اللہ میاں کی ذات، گھسیٹے ہے بحث میں
منکر کی ذات ، ورنہ ہے زاہد کا نشانہ٠  


No comments:

Post a Comment