Thursday, April 5, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 20



20

ख़ारजी हैं सब तमाशे, साक़िया इक जाम हो,
अपनी हस्ती में सिमट जाऊं, तो कुछ आराम हो.

ख़ुद सरी, ख़ुद बीनी, ख़ुद दारी, मुझे इल्हाम1 है,
क्यूं ख़ुदा साज़ों की महफ़िल से, मुझे कुछ काम हो.

तुम असीर2 ए पीर मुर्शिद हो, कि तुम मफ़रूर3 हो,
हिम्मत ए  मरदां न आई, या कि तिफ़्ल ए ख़ाम4 हो.

हाँ यक़ीनन एक ही, लम्हे की यह तख़्लीक़5 है, 
वरना दुन्या यूं अधूरी, और तशना काम हो.

हम पशेमाँ हों कभी, न फ़ख्र के आलम में हों,
आलम ए मासूमियत हो बे ख़बर अंजाम हो.

अस्तबल में नींद की, मारी हैं "मुंकिर" करवटें,
औने पौने बेच दे घोडे को, ख़ाली दाम हो.

1 ईश वाणी 2 क़ैदी ३ फ़रार 4 बच्चा 5 रचना 

خارجی ہیں سب تماشے، ساقیہ اک جام ہو 
اپنی ہستی میں سمٹ جاؤں تو کچھ آرام ہو٠ 

،خود سری خود بینی خود داری، مجھے الہام ہے 
کیوں خدا سازوں کی محفل سے، میرا کچھ کا م ہو٠ 

،تم اسیرِ پیرِ مرشد ہو کہ تم مفرور ہو 
ہمّت مرداں نہ آئ، یا کہ طِفل خام ہو٠ 

،ہاں یقیناً ایک ہی لمحے کی یہ تخلیق ہے 
ورنہ دنیا یوں ادھوری، اور تشنہ کا م ہو٠ 

،ہم پشیماں ہوں کبھی، نہ فخر کے عالم میں ہوں 
عالمِ معصومیت ہو، بے خبرانجام ہو٠ 

،اصطبل میں نیند کی ماری ہیں منکر کروٹیں 
اَونے پَونے بیچ دے، گھوڑے کو خالی دام ہو٠ 

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