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दो चार ही बहुत हैं, गर सच्चे रफ़ीक़ हैं,
बज़्म ए अज़ीम से, तेरे दो चार ठीक हैं.
तारीख़ से हैं पैदा, तो मशकूक है नसब,
जुग़राफ़िया ने जन्म दिया, तो अक़ीक़ हैं.
कांधे पे है जनाज़ा, शरीक ए हयात का,
आँखें शुमार में हैं कि, कितने शरीक हैं?
ईमान ताज़ा तर, तो हवाओं पे है लिखा,
ये तेरे बुत ख़ुदा तो, क़दीम ओ दक़ीक़ हैं.
इनको मैं हादसात पे, ज़ाया न कर सका,
आँखों की तिश्नगी , यही बूँदें रक़ीक़ हैं.
रहबर मुआशरा तेरा, तहतुत्सुरा में है,
"मुंकिर" बक़ैद ए सर, लिए क़ल्ब ए अमीक़ हैं.
रफीक़=दोस्त *मशकूक=शंकित * नसब=नस्ल *जुगराफ़िया=भूगोल
*दकीक़=पुरातन *तहतुत्सुरा=पाताल *क़ल्बे अमीक़ गंभीर ह्र्दैय के साथ
،دو چار ہی بہت ہیں، جو سچے رفیق ہیں
بزمِ عظیم سے ترے، دو چار ٹھیک ہیں٠
،تاریخ سے ہیں پیدا، تو مشکوک ہے نسب
جغرافیہ نے جنم دیا تو عقیق ہیں٠
،کاندھے پہ تھا جنازہ، رفیقِ حیات کا
آنکھیں شُمار میں تھیں، کہ کتنے شریک ہیں٠
،ایمان تازہ تر، تو فضاؤں میں ہے لکھا
تیرے بُت و خدا تو قدیم و دقیق ہیں٠
،آنسو کو اپنی لاش پہ ضائع نہ کر سکے
آنکھوں کی تشنگی ، یہ بوندیں رقیق ہیں٠
،رہبر معاشرہ ترا، تحت الثراء میں ہے
منکر بقید سر، لئے قلبِ عمیق ہیں٠
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