Sunday, April 22, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 37



37

कहीं हैं हरम1 की हुकूमतें, कहीं हुक्मरानी-ऐ-दैर2 है,
कहाँ ले चलूँ , तुझे हम जुनूँ, कहाँ ख़ैर शर3 के बग़ैर है.

बुते गिल4 में रूह को फूँक कर, उसे तूने ऐसा जहाँ दिया,
जहाँ जागना है एक ख़ता, जहाँ बे ख़बर ही बख़ैर है.

बड़ी खोखली सी ये रस्म है, कि मिलो तो मुँह पे हो ख़ैरियत?
ये तो एक पहलू नफ़ी5 का है, कहाँ इस में जज़्बाए ख़ैर है.

मुझे ज़िन्दगी में ही चाहिए, तेरी बाद मरने कि चाह है,
मेरा इस ज़मीं पे है कारवाँ, तेरी आसमान की सैर है.

सभी टेढ़े मेढ़े सवाल हैं कि समाजी तौर पे क्या हूँ मैं,
मेरी ज़ात पात से है दुश्मनी, मेरा मज़हबों से भी बैर है.

१-काबा २-मन्दिर ३-झगडा ४-माटी की मूरत ५-नकारात्मक

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،کہیں ہیں حرم کی حکومتیں، کہیں حُکمرانی ے دیر ہے 
کہاں لے چلوں تجھے ائے جنوں، کہاں خیر شر کے بغیر ہے٠ 

،بُتِ گل میں روح کو پھونک کر، اُسے تو نے ایسا جہاں دیا
جہاں جاگنا ہے اک خطا، جہاں بے خبر ہی بخیر ہے٠ 

بڑی کھوکھلی سی یہ رسم ہے، کہ ملو تو منہ پہ ہو خیریت؟ 
یہ تو ایک پہلونفی کا ہے، کہاں اس میں جزبہ۶ خیر ہے؟ 

،مجھے زندگی میں ہی چاہئے، تری بعد مرنے کی چاہ ہے 
مرا اس زمیں پہ ہے کا روں، ترا آسمان کی سیر ہے٠ 

،سبھی ٹیڑھے میڑھےسے سوال ہیں، کہ سماجی طور پہ کیا ہوں میں؟
میری ذات پات سے دُشمنی، میرا مذہبوں سے بھی بیر ہے٠ 

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