Wednesday, July 3, 2013

Junbishen 37


नज़्म 


शक बहक 

यकीं बहुत कर चुके हो यारो ,
इक मरहला1 है, गुमाँ2 को समझो .
यकीं है अक्सर तुम्हारी गफ़लत ,
खिरद3 के आबे-रवां को समझो .
अक़ीदतें और आस्थाएँ ,
यकीं की धुंधली सी रह गुज़र4 हैं .
ख़रीदती हैं यह सादा लौही5,
यकीं की नाक़िस दुकाँ को समझो .
१-पड़ाव २-अविश्वाश का उचित मार्ग ३-अक्ल ४-सरल स्वभाव ५-हानि करक


2 comments:

  1. इ देखो केतना समझा रहे हैं, दुकाँ भी औउर मकाँ भी.....किन्तु बछुआ हैं की कछु समझतेइच नहीं है.....इ मैय्या बछुआ के माथे के ऊपर समझने की कोन्हु मशीन काहे नाहीं लगा देती.....

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  2. समझ सके हैं हम दुनिया को बस इतना..,
    के यहीं पे दोज़ख है, यहीं पे जन्नत है.....

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