नज़्म
कब तक ?
अंधी गुफाओं में कब तक छुपोगे ?
नस्लों के हमराह कब तक चुकोगे ?
गुमबद, शिवालों के कारीगरों पर ,
सदियों से झुकते हो, कब तक झुकोगे ?
क़ौमे नई सीढियाँ गढ़ रही ,
देखो ख़लाओं की छत चढ़ रही हैं ,
तुम हो कि माज़ी से लिपटे हुए हो ,
नस्लें तुम्हारी दुआ पढ़ रही हैं .
जागो नई रोशनी आ गयी है ,
सच्चाइयों को ज़मीन पा गयी है ,
रस्मों के जालों में उलझे हुए हो ,
तह्जीबे नव, इससे घबरा गयी है .
पीछे बहुत रह न जाओ दिवानो ,
न ख़्वाबों की जन्नत में जाओ दिवानो ,
बच्चों को आगे बढाओ दिवानो ,
'मुंकिर' के संग जाग जाओ दिवानो .
खलाओं =क्षितिजो
मौजे वही मंजर वही पानी औ समंदर भी वही है..,
ReplyDeleteमाज़ी वही मंजिल वही जीने का पत्थर भी वही है..,
सिर्फ रूहों ने ही नौ जहान में बदले पहरने-बदन..,
महरो-माह वही सिपहर वही तबक़गर भी वही है.….
माज़ी = इतिहास
तबक़गर = सोने चाँदी आदि के पत्तर बनाने वाला