नज़्म
शक बहक
यकीं बहुत कर चुके हो यारो ,
इक मरहला1 है, गुमाँ2 को समझो .
यकीं है अक्सर तुम्हारी गफ़लत ,
खिरद3 के आबे-रवां को समझो .
अक़ीदतें और आस्थाएँ ,
यकीं की धुंधली सी रह गुज़र4 हैं .
ख़रीदती हैं यह सादा लौही5,
यकीं की नाक़िस दुकाँ को समझो .
१-पड़ाव २-अविश्वाश का उचित मार्ग ३-अक्ल ४-सरल स्वभाव ५-हानि करक
इ देखो केतना समझा रहे हैं, दुकाँ भी औउर मकाँ भी.....किन्तु बछुआ हैं की कछु समझतेइच नहीं है.....इ मैय्या बछुआ के माथे के ऊपर समझने की कोन्हु मशीन काहे नाहीं लगा देती.....
ReplyDeleteसमझ सके हैं हम दुनिया को बस इतना..,
ReplyDeleteके यहीं पे दोज़ख है, यहीं पे जन्नत है.....