दोहे
ले कर आपस में लड़ें, दीन धरम का ज्ञान,
इनमे कितना मेल था, जब थे ये अज्ञान.
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चले जिहादी अरब से, न पहुंचे जापान,
भारत आकर फँस गया , इस्लामी अभियान.
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मुल्ला पंडित एक हैं, जनता को लड्वाएं ,
बोएं पेड़ बबूल का, आम मगर ये खाएँ .
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'मुनकिर' मत दे भीख तू , इसका बद तर अंजाम,
विकलांगों पर कर दया, दे कुछ इनको काम.
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ससुरी माया जाल को, सर पे लिया है लाद,
अपने दुश्मन हो गए, रख कर ये बुन्याद.
सुन्दर ,सटीक और सार्थक . बधाई
ReplyDeleteसादर मदन .कभी यहाँ पर भी पधारें .
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
सार्थक अभिवयक्ति......
ReplyDeleteसही अंदाज दोहों का ।
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