क़तआत
ज़िन्दगी कटी
बन्ने का और संवारने का मौक़ा न मिल सका,
खुशियों से बात करने का मौक़ा न मिला सका,
बन्दर से खेत ताकने में ही ज़िन्दगी कटी,
कुछ और कर गुजरने का मौक़ा न मिल सका।
बंधक
ऋण के गाहक बन बैठे हो,
शून्य के साधक बन बैठे हो,
किस से मोक्ष और कैसी मोक्ष,
ख़ुद में बंधक बन बैठे हो।
शायरी
फ़िक्र से ख़ारिज अगर है शायरी , बे रूह है ,
फ़न से है आरास्ता , माना मगर मकरूह है,
हम्द नातें मरसिया , लाफ़िकरी हैं, फिक्रें नहीं ,
फ़िक्र ए नव की बारयाबी , शायरी की रूह है .
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार८ /१ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, क्या कहने
ReplyDeleteउत्तराखंड त्रासदी : TVस्टेशन ब्लाग पर जरूर पढ़िए " जल समाधि दो ऐसे मुख्यमंत्री को"
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html?showComment=1372748900818#c4686152787921745134