क़तआत
वादा तलब
नाज़ ओ अदा पे मेरे, न कुछ दाद दीजिए ,
मत हीरे मोतियों से, मुझे लाद दीजिए ,
हाँ इक महा पुरुष की है, धरती को आरज़ू ,
मेरे हमल को ऐसी इक औलाद दीजिए .
आक़बत के ताजिर
ये दस्त ए नफ़्स में, बे ख़ाहिशी की ज़ंजीरें ,
ये नीम ख़ुद कुशी में, आक़्बत की तदबीरें ,
खुदा के साथ ताल्लुक़ ये, ताजिराना है ,
अजब है तर्क ए तअय्युश, ब ग़रज़ जागीरें .
बार ए ज़मीं
हाथों में हैं दुआओं के, कंगन जड़े हुए ,
ये फावड़े कुदाल हैं , बेजाँ पड़े हुए ,
क़हहारी और रहीमी की, बेडी है पाँव में ,
दिल में हैं खौफ़ ओ ऐश के शैतां खड़े हुए .
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (25-07-2013) को "ब्लॉग प्रसारण- 66,सावन की बहारों के साथ" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
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