रुबाइयाँ
हैवान हुवा क्यूँ न भला, तख्ता ए मश्क़
इंसान का होना है, रज़ाए अहमक
शैतान कराता फिरे, इन्सां से गुनाह
अल्लाह करता रहे, उट्ठक बैठक
साइंस की सदाक़त पे यकीं रखता हूँ,
अफकार ओ सरोकार का दीं रखता हूँ,
सच की देवी का मैं पुजारी ठहरा,
बस दिल में यही माहे-जबीं रखता हूँ.
ना ख्वान्दा ओ जाहिल में बचेंगे मुल्ला,
नाकारा ओ काहिल में बचेगे मुल्ला,
बेदार के क़ब्जे में समंदर होगा,
सीपी भरे साहिल पे बचेगे मुल्ला.
बाद ऱोज-ए-कयामत के, रसूखदार कौन होगा..,
ReplyDeleteअलमासो-लालो-गौहर का, खरीदार कौन होगा.....