कता
ढलान
हस्ती है अब नशीब१ में, सब कुछ ढलान पर,
कोई नहीं जो मेरे लिए, खेले जान पर,
ख़ुद साए ने भी मेरे, यूँ तकरार कर दिया,
सर पे है धूप, लेटो, मेरा क़द है आन पर।
१-ढाल
मिठ्ठू मियाँ
पढ़ते हो झुकाए हुए सर, क़िस्सा कहानी,
अंजान जुबां में, है लिखी देव की बानी ,
यूँ लूट के ले जाते हो, अंबार ए सवाब ,
दर पे हैं अज़ाबों के ये, हालात जहानी .
मुज़ब्ज़ब
इकबाल बग़ावत लिए, लगते हैं ग़ज़ल में,
डरते हैं, सदाक़त को छिपाए हैं, हमल में,
बातिन में हैं कुछ और, निभाए हैं खुदा को,
जैसे थे मुसलमाँ नए, बुत दाबे बग़ल में .
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