नज़्म
मैं ----
सदियों की काविशों1 का, ये रद्दे अमल2 हूँ मैं ,
लाखों बरस के अज़्म मुसलसल3 का फल हूँ मैं ।
हालाते ज़िंदगी ने मुझे नज़्म4 कर दिया ,
फ़ितरत5 के आईने में, वगरना ग़ज़ल6 हूँ मैं।
मेयारे आम7 होगा, कि जिसके हैं सब असीर8 ,
हस्ती है मेरी अपनी, ख़ुद अपना ही बल हूँ मैं ।
उक़दा कुशाई9 मेरी, ढलानों पे मत करो ,
थोड़ा सा कुछ फ़राज़10 पे, आओ तो हल हूँ मैं ।
ये तुम पे मुनहसर है, मुझे किस तरह छुओ ,
पत्थर की तरह सख्त, तो कोमल कमल हूँ मैं ।
मुझ को क़सम है, रुक्न हुक़ूक़ुल इबाद11 की ,
ज़मज़म12 सा पाक साफ़ हूँ, और गंगा जल हूँ मैं ।
इंसानियत से बढ़ के, मेरा दीन कुछ नहीं ,
सच की तरह ही अपनी, ज़मीं पर अटल हूँ मैं ।
मुनाफ़िक़13 की ख़ू नहीं है, न दारो रसन14 का खौफ़ ,
मैं हूँ खुली किताब, बबांगे दुहल15 हूँ मैं ।
मैं कुछ अज़ीम लोगों को, सजदा न कर सका ,
उनकी ही पैरवी में, मगर बा अमल हूँ मैं ।
'मुंकिर' को कोई ज़िद है, न कोई जूनून है ,
लाओ किताबे सिदक16 तो देखो रहल17 हूँ में ।
१-प्रय्तानो २-प्रतिक्रया ३-लगातार उत्साह ४-शीर्षक अधीन कविता ५-प्रकृति ६-प्रेमिका से वरत्लाप ७-मध्यम अस्तर ८-कैद ९-गाठे खोलना
१०-ऊंचाई ११-बन्दों का अधिकार १२-मक्के का जल १३-दोगुला 14 फाँसी १5-डंके की चोट १6-सच्ची किताब १7-किताब पढने का स्टैंड
रख्ता सजे सारँगी , नज्म नफ़ीरी तूर ।
ReplyDeleteवाके सोंहे सोंहती, जाके सुर में नूर। 69 /
भावार्थ : -- गज़ल, सारंगी पर सजती है, नज्म शहनाई और तुरही पर सजती है । और उनके रूबरू फ़ैज पाती है, जिनके सुर में नूर बसता हो ॥
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
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