Thursday, July 18, 2013

junbishen 45

 नज़्म 

तुम - - -

ख़ुद को समझ रहे हो, कि रूहे रवां1 हो तुम ,
खिलक़त2 ये कह रही है, कि उसपे गरां हो तुम ।

सब फ़ारिग़ सलात3 अभी तक अजां हो तुम ,
हर सम्त है बहार,  शिकार खिजाँ4 हो तुम ।

क्यूँ चाहते हो, अपना यकीं सब पे थोप दो ,
है भूत आस्था का, वहीं पर जहाँ हो तुम ।

फ़रदा5 की कोख में हैं, सभी हल छिपे हुए ,
माज़ी6 सवार सम्त, मुखालिफ़7 रवाँ हो तुम ।

सर जिस्म पर ज़रूर है, रूहों का क्या पता ?
इसका ख़याल पहले करो, नातवाँ8 हो तुम ।

शिद्दत9 है, जंग जूई10, बेएतदाली11 है ,
आपस में लड़ रहे हो, जहाँ इम्तेहानहो तुम ।

महकूम12 गर हुए, तो रवा दारी13 चाहिए ,
कुछ और ही लगे हो, जहाँ हुक्मराँ14 हो तुम ।

कुछ ऐसे बन सको, कि तुम्हारी हो पैरवी ,
दुन्या गवाह हो, कि उरूजे-जहाँ15 हो तुम ।

'मुंकिर' जगा रहा है, उठो मर्तबा16 वालो ,
इक्कीसवीं सदी में, जहाँ है, कहाँ हो तुम।

1-प्राण-वर्धक २- अन्तर राष्ट्रिय जन समूह ३-नमाज़ अदा कर चुकना ४-पतझड़ ५-आनेवाला कल ६-अतीत ७-उल्टी दिशा ८ -कमजोर
 ९-उग्रता १०-युद्धाभियान ११-असंतुलन १२-आधीन १३ -उचित बर्ताव १४-शाशक१५- दुन्या ऊपर १६-श्रेरेष्ट

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