Friday, April 24, 2009

ग़ज़ल - - - जहान ए अर्श का बन्दा है बार ए अन्जुमन होगा


ग़ज़ल

जहान ए अर्श का बन्दा है, बार ए अन्जुमन होगा,
मसाइल पेश कर देगा, नशा सारा हिरन होगा.

मुझे दो गज़ ज़मीन दे दे अगर शमशान में अपने,
मज़ार ए यार पे अर्थी जले तेरी, मिलन होगा.

मिले हैं पेट पीठों से, तलाशी इनकी भी लेना,
कहीं कुछ अन्न मिल जाए, तो बाक़ी है हवन होगा.

वो जिस दिन से ग़लाज़त साफ़ करना बंद कर देगा,
कोई सय्यद न होगा, और न कोई बरहमन होगा.

अपीलें सेक्स करता हो, तो ऐसा हुस्न है बरतर,
अजब मेयार लेके हुस्न का, यह बांक पन होगा.

फिरी के, गिफ्ट के, और मुफ़्त के, हमराह हैं सौदे,
खरीदो मौत गर 'मुंकिर' तो तोहफ़े में कफ़न होगा.
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2 comments:

  1. आपका लिखा पसंद आया। ग़ज़लों में प्रयुक्त कठिन शब्दों के साथ सा् मायने भी दे दें तो मेहरबानी होगी।

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  2. आज तो बहुत बेहतरीन गजल पोस्ट की है आपने

    आपका नियमित पाठक --वीनस केसरी

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