ग़ज़ल
ला इल्मी का पाठ पढाएँ, अन पढ़ मुल्ला योगी,
दुःख दर्दों की दवा बताएँ, ख़ुद में बैठे रोगी.
दुःख दर्दों की दवा बताएँ, ख़ुद में बैठे रोगी.
तन्त्र मन्त्र की दुन्या झूठी, बकता भविश्य अयोगी,
अपने आप में चिंतन मंथन, सब को है उपयोगी.
आँखें खोलें, निंद्रा तोडें, नेता के सहयोगी,
राम राज के सपन दिखाएँ, सत्ता के यह भोगी.
बस ट्रकों में भर भर के, ये भेड़ बकरियां आईं,
ज़िदाबाद का शोर मचाती, नेता के सहयोगी.
पूतों फलती, दूध नहाती, रनिवास में रानी,
अँधा रजा मुकुट संभाले, मारे मौज नियोगी.
"मुकिर' को दो देश निकला, चाहे सूली फांसी,
दामे, दरमे, क़दमे, सुखने, चर्चा उसकी होगी.
*****दामे,दरमे,क़दमे,सुखने=हर अवसर पर
लाजवाब...बेहतरीन...
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुन्दर व्यंग्य रचना।
ReplyDelete-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन