ग़ज़ल
बुल हवस को मौत तक, हिर्स ओ हवा ले जाएगी,
जश्न तक हमको क़िनाअत की अदा ले जाएगी।
बद ख़बर अख़बार का, पूरा सफ़ह ले जाएगी,
नेक ख़बरी को बलाए, हाशिया ले जाएगी।
बाँट दूँगा बुख्ल अपने खुद ग़रज़ रिश्तों को मैं,
बाद इसके जो बचेगा, दिल रुबा ले जाएगी।
रंज ओ गम, दर्द ओ अलम, सोज़ ओ ख़लिश हुज़्न ओ मलाल,
"ज़िन्दगी हम से जो रूठेगी, तो क्या ले जाएगी"।
मेरा हिस्सा ना मुरादी का, मेरे सर पे रखो,
अपना हिस्सा ऐश का, वह बे वफ़ा ले जाएगी।
गैरत "मुंकिर" को मत, काँधा लगा पुरसाने हाल,
क़ब्र तक ढो के उसे, उसकी अना ले जाएगी।
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*बुल हवस =लोलुपता *हिर्स ओ हवा =आकाँछा *किनाअत=संतोष *बुख्ल=कंजूसी *अना=गैरत
*बुल हवस =लोलुपता *हिर्स ओ हवा =आकाँछा *किनाअत=संतोष *बुख्ल=कंजूसी *अना=गैरत
भाई जुनैद मुकीर जी!
ReplyDeleteजाल-जगत पर बहुत अर्से के बाद
एक खूबसूरत गजल पढ़ने को मिली।
मुबारकवाद कुबूल करें।
बहुत उम्गा गज़ल है।बधाई।
ReplyDeleteरंज ओ गम, दर्द ओ अलम, सोज़ ओ खलिस हुज़्न ओ मलाल,
ReplyDelete"ज़िन्दगी हम से जो रूठेगी तो क्या ले जाएगी"।
क्या बात है साहब ! बेमिसाल !!
मेरा हिस्सा ना मुरादी का मेरे सर पे रखो,
अपना हिस्सा ऐश का वह बे वफा ले जाएगी।
उम्दा शेर. उम्दा ग़ज़ल.
रंज ओ गम, दर्द ओ अलम, सोज़ ओ खलिस हुज़्न ओ मलाल,
ReplyDelete"ज़िन्दगी हम से जो रूठेगी तो क्या ले जाएगी"।
bahot khub....umda gazal...badhaayee
arsh
क्या लाजवाब शेर कहते है आप भाई जुनेद साहब। अगर आपकी इजाजत हो तो आपकी कुछ गजलें मैं अपनी किताब में शामिल करना चाहूंगा ये किताब नयी गजलो पर आधारित है।
ReplyDeleteबद खबर अख़बार का पूरा सफह ले जाएगा,
ReplyDeleteनेक खबरी को बलाए हाशिया ले जाएगी।
रचना अच्छी लगी। चलिए मेरी भी एक तुकबंदी पेश है-
तुम भले खुश हो अभीतक बेचकर अपना जमीर।
आने वाली जिन्दगी तुमको सजा दे जायगी।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com