Thursday, April 2, 2009

ग़ज़ल - - - उस तरफ फिर बद रवी की इन्तहा ले जाएगी



ग़ज़ल

उस तरफ फिर बद रवी की, इन्तहा ले जाएगी,
फिर घुटन कोई किसी को, करबला ले जायगी।

ज़ुल्म से सिरजी ये दौलत, दस गुना ले जाएगी,
लूट कर फ़ानी ने रक्खा है, फ़ना ले जाएगी।

है तआक़ुब में ये दुन्या, मेरे नव ईजाद के,
मैं उठाऊंगा क़दम, तो नक़्श ए पा ले जाएगी।

तिफ़्ल के मानिंद, अगर घुटने के बल चलते रहे,
ये जवानी वक़्त की आँधी उड़ा ले जाएगी।

बा हुनर ने चाँद तारों पर बनाई है पनाह,
मुन्तज़िर वह हैं, उन्हें उन की दुआ ले जाएगी।

सारे ख़िलक़त का अमानत दार है, "मुंकिर" का खू,
ए तमअ तुझ पर नज़र है, कुछ चुरा ले जाएगी।

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*बद रवी =दूर व्योहार *तआक़ुब=पीछा करना *तिफ्ल=बच्चा *तमअ=लालच

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