ग़ज़ल
आबला पाई है, दूरी है बहुत,
है मुहिम दिल की, ज़रूरी है बहुत.
है मुहिम दिल की, ज़रूरी है बहुत.
कुन कहा तूने, हुवा दन से वजूद,
दुन्या ये तेरी, अधूरी है बहुत।
रहनुमा अपनी शुजाअत में निखर,
निस्फ़ मर्दों की हुजूरी है बहुत।
देवताओं की पनाहें बेहतर,
वह खुदा, नारी ओ नूरी है बहुत।
तेरे इन ताज़ा हिजाबों की क़सम,
तेरा यह जलवा, शुऊरी है बहुत।
इम्तेहां तुम हो, नतीजा है वजूद,
तुम को हल करना ज़रूरी है बहुत।
*****
वाह जी वाह बेहतरीन गजल
ReplyDeleteachhi gazal kahi aapne firse... dhero badhaaee aapko....
ReplyDeletearsh