Thursday, April 23, 2009

ग़ज़ल - - - जितना बड़ा है क़द तेरा उतना अजीम है


ग़ज़ल

जितना बड़ा है क़द तेरा, उतना अज़ीम है,
ऐ पेड़! तू भी राम है, तू भी रहीम है.

ईमान दार लोगों के, ज़ानों पे रख के सर,
बे खटके सो रहे हो, ये अक़्ले सलीम है.

तेरह दिलों की धड़कनें, तेरह दलों का बल,
जम्हूर का मरज़ ये, वबाल ए हकीम है.

अलक़ाब में आदाब के, अम्बार मत लगा,
बालाए ताक कर इसे, क़द्रे क़दीम है.

खूं का लिखा हुवा, मेरा दिल में उतार लो,
ये आसमानी कुन, न अलिफ़,लाम, मीम है.

'मुंकिर' खिला रहा है, जो कडुई सी गोलियां,
इंकार की दवा है, ये तासीर नीम है.
*****

3 comments:

  1. बेहतरीन गजल।
    word verification हटा दें।
    टिप्पणी करने में दिक्कत होती है।

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  2. bahot khubkahi aapne ye gazal... badhayee...


    arsh

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  3. वाह ! वाह !! मुंकिर साब
    "खून का लिखा हुवा मेरा दिल में उतार लो/ये आसमानी कुन, न अलिफ़,लाम, मीम है" क्या बात है
    and please remove this word-verification thing from your setting...it doesn't help at all

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