ग़ज़ल
मोहलिक तरीन रिश्ते, निभाए हुए थे हम,
बारे गराँ को सर पे, उठाए हुए थे हम.
बारे गराँ को सर पे, उठाए हुए थे हम.
खामोश थी ज़ुबान, कि अल्फ़ाज़ ख़त्म थे,
लाखों गुबार दिल में दबाए हुए थे हम.
ठगता था हम को इश्क, ठगाता था खुद को इश्क,
कैसा था एतदाल, कि पाए हुए थे हम.
गहराइयों में हुस्न के, कुछ और ही मिला,
न हक़ वफ़ा को मौज़ू ,बनाए हुए थे हम.
उसको भगा दिया कि वोह, कच्चा था कान का,
नाकों चने चबा के, अघाए हुए थे हम.
सब से मिलन का दिन था, बिछड़ने की थी घडी,
'मुंकिर' थी क़ब्रगाह, कि छाए हुए थे हम,
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*मोहलिक तरीन =हानि कारक *बारे गराँ=भारी बोझ *एतदाल=संतुलन *मौज़ू=विषय.
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