Wednesday, June 5, 2019

क़तआत ٠जुंबिशें


क़तआत 
इन्फ़िरादियत 
जब शरअ इज्तेहाद पे हो जाएगी क़ज़ा,
जब फिर से फ़र्द पूजेगा अपना ही इक ख़ुदा,
जब छोड़ देगी फ़र्द को यह इज्तेमाइयत,
इंसान जा के पाएगा तब अपना मर्तबा.  
इन्फ़िरादियत=अनुपमता इज्तेहाद=सुधार,
फ़र्द=व्यक्ति,इज्तेमाइयत=समूह ,मर्तबा=महिमा  

انفرادیت 
جب شرع اجتہاد پہ ہو جایگی قضا 
جب پھر سے فرد پوجیگا اپنا ہی اک خدا 
جب چھوڑ دیگی فرد کو یہ اجتماعیت 
انسان جا کے پاےگا تب  اپنا مرتبہ٠  

*
अजीब बन्दा 

सर झुकाए हुए ही चढ़ता है,
कुछ इबारत ज़मीं की पढ़ता है,
उस से भिड़ना बड़ा ही मुश्किल है,
सारे इलज़ाम ख़ुद पे मढ़ता है. 

عجیب بندہ 

سر جھکاے ہوئے ہی چلتا ہے
کچھ عبارت زمیں کی پڑھتا ہے
اس سے بھڑنا بڑا ہی مشکل ہے 
سارے الزام خود پہ مڑھتا ہے٠ 

**
डिजाइन 

मायूस हुवा मुंकिर तब उनको हँसी आई,
मह्जूज़ हुवा मुंकिर तब उनको हँसी आई,
टाइम का डिज़ाइन है पल भर के तवक़्क़ुफ़ में,
मारूफ़ हुवा मुंकिर तब उनको हँसी आई.
मह्जूज़=ख़ुश,तवक़्क़ुफ़=क्षणिक,मारूफ़=पहचान 

ڈیزائن

مایوس ہوا منکر تب انکو ہنسی آئ 
محظوظ ہوا منکر تب انکو ہنسی آئ 
ٹائم کا ڈیزائن ہے پل بھر کے توقف میں، 
معروف ہوا منکر تب انکو ہنسی آئ٠ 

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