Sunday, June 30, 2019

जुंबिशें ग़ज़ल


  ग़ज़ल 

महरूमियाँ सताएँ न, नींदों की रात हो,
दिन बन के बार गुज़रे न, ऐसी नजात हो.

हाथों की इन लकीरों पे, मत मारिए छड़ी,
उस्ताद मोहतरम, ज़रा शेफ्क़त का हाथ हो.

यह कशमकश सी क्यूं है, बग़ावत के साथ साथ,
पूरी तरह से देव से छूटो, तो बात हो.

कुछ तर्क गर करें तो सुकून व् क़रार है,
ख़ुद नापिए कि आप की, कैसी बिसात हो.

उंगली से छू रहे हैं, तसव्वर की माह व् रू,
मूसा की गुफ़्तुगु में, ख़ुदाया सबात4 हो.

इक गोली मौत की मिले 'मुंकिर' हलाल की,
गर रिज़्क1 का ज़रीया2 मदद हो, ज़कात3 हो.

१-भरण-पोषण २-साधन ३-दान 4 तत्व 

محرومیاں ستائیں نہ، نیندوں کی رات ہو 
دن بار بن کے گزرے نہ ایسی نجات ہو٠ 

ہاتھوں کی ان لکیروں پہ، مت مارئے چھڑی، 
استادِ محترم زرہ شفقت کا ہاتھ ہو٠ 

یہ کشمکش سی کیوں ہے، بغاوت کے ساتھ ساتھ؟ 
پوری طرح سے دیو سے چھوٹو تو بات ہو٠ 

کچھ ترک گر کریں، تو سکون و قرار ہے 
خود ناپئے کہ آپ کی کیسی بساط ہو٠ 

اُنگلی سے چھو رہے ہیں، تصوّر کی وہ پری 
موسیٰ کی گُفتگو میں خدایا ثبات ہو. 

اک گولی موت کی کما منکر حلال کی 
گر رزق کا زریعہ مدد ہو، زکات ہو٠ 

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