Sunday, June 2, 2019

मैं ----




मैं ----

सदियों की काविशों1 का, ये रद्दे अमल2 हूँ मैं,
लाखों बरस के अज़्म मुसलसल3 का फल हूँ मैं.

हालाते ज़िंदगी ने मुझे नज़्म4 कर दिया,
फ़ितरत5 के आईने में, वगरना ग़ज़ल6 हूँ मैं.

मेयारे आम7 होगा, कि जिसके हैं सब असीर8,
हस्ती है मेरी अपनी, ख़ुद अपना ही बल हूँ मैं.

उक़दा कुशाई9 मेरी, ढलानों पे मत करो ,
थोड़ा सा कुछ फ़राज़10 पे, आओ तो हल हूँ मैं.

ये तुम पे मुनहसर है, मुझे किस तरह छुओ,
पत्थर की तरह सख्त, तो कोमल कमल हूँ मैं.

मुझ को क़सम है, रुक्न हुक़ूक़ुल इबाद11 की,
ज़मज़म12 सा पाक साफ़ हूँ, और गंगा जल हूँ मैं.

इंसानियत से बढ़ के, मेरा दीन कुछ नहीं,
सच की तरह ही अपनी, ज़मीं पर अटल हूँ मैं.

मस्लेहत पसंद13 हूँ, न दार व् रसन14 का खौ़फ़,
मैं हूँ खुली किताब, बबांगे दुहल15 हूँ मैं.

मैं कुछ अज़ीम लोगों को, सजदा न कर सका,
उनकी ही पैरवी में, मगर बा अमल हूँ मैं.

'मुंकिर' को कोई ज़िद है, न कोई जूनून है,
लाओ किताब ए सिदक16 तो देखो रेहल17 हूँ में. 

१-प्रय्तानो २-प्रतिक्रया ३-लगातार उत्साह ४-शीर्षक अधीन कविता ५-प्रकृति 
६-प्रेमिका से वरत्लाप ७-मध्यम अस्तर ८-कैद ९-गाठे खोलना १०-ऊंचाई 
११-बन्दों का अधिकार १२-मक्के का जल १३-दोगुला 14 फाँसी 
१5-डंके की चोट १6-सच्ची किताब १7-किताब पढने का स्टैंड

میں

صدیوں کی کاوِشوں کا یہ رد عمل ہوں میں 
اک نقطہء حیات کی نوبت ، اجل ہوں میں ٠

حالات زندگی نے ، مجھے نظم کر دیا 
فطرت کے آئینے میں ، مسلسل غزل ہوں میں ٠ 

میعار عام ہوگا کہ ، جسکے ہیں سب اسیر 
ہستی ہے میری اپنی ، کہ خود اپنا بل ہوں میں ٠

عقدہ کشائی میری ، ڈھلانوں پہ مت کرو 
تھوڑا سا کچھ فراز پہ ، آؤ تو حل ہوں میں ٠

مجھکو قسم ہے ، رکن حقوق العباد کی 
زم زم سا پاک صاف ہوں ، تو گنگا جل ہوں میں ٠

انسانیت سے بڑھ کے مرا دین کچھ نہیں 
سچ کی طرح ہی اپنی ، زمیں پر اٹل ہوں میں ٠

جینے کا صرف آج کو ، الہام ہے مجھے 
گزرا ہوا نہ کل ہوں ، نہ آنے کا کل ہوں میں ٠ 

دیر و حرم کا خوف ، منافق کی خو نہیں 
میں ہوں کھلی کتاب ، ببانگ دھل ہوں میں ٠

میں کچھ عظیم لوگوں کو ، سجدہ نہ کر سکا 
انکی ہی پیروی میں ، مگر با عمل ہوں میں ٠

منکر' کو کوئی ضد ہے نہ کوئی جنون ہے  '
لاؤ کتاب صِدق تو ، دیکھو رِحل ہوں میں ٠  

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