Sunday, June 23, 2019

जुंबिशें - नज़्में


दस्तक 

घूँघट तो उठा दे कभी, ऐ वहिदे मुतलक़1,
चिलमन पे खड़ा कब से हूँ, आमादए दस्तक.

बाज़ार तेरे ख़ैर की बरकत की लगी है,
अय्यार लगाए हैं दुकानें, जो ठगी है.

तुज्जार2 तेरी शक्लें हज़ारो बनाए हैं,
आपस में मुक़ाबिल भी हैं, तेवर चढ़ाए हैं.

अल्लाह बड़ा है, तू बड़ा है, तू बड़ा है,
शैतान है छोटा जो तेरे साथ खड़ा है.

कब तक यह फ़सानों की हवा छाई रहेगी,
माजी3  की सियासत की वबा छाई रहेगी.

सर पे है खड़ा वक़्त चढ़ाए हुए तेवर,
हो जाए न महशर4  से ही पहले कोई महशर.

अब सोच को बदलो भी क़दामत के पुजारी,
मुंकिर तभी संवरेगी ज़रा नस्ल तुम्हारी. 

१-एकेश्वर २- व्यापारी ३-भूत काल ४-प्रलय 

دستک

گھُونگھٹ تو اُٹھا دے کبھی تو واحدِ مُطلعق 
بے چین یقیں ، دید کے در پہ ہے، بہ شدّت ٠

بازار ترے خیر کی ، برکت کی لگی ہے
عیاّر لگاۓ ہیں دکانیں ، جو ٹھگی ہے ٠

تجاّر تیری شکلیں ہزاروں بناۓ  
آپس میں مقابل ہیں یہ ، تیور چرھاۓ ٠

الله بڑا ہے ، تو بڑا ہے ، تو بڑا ہے 
شیطان ہے چھوٹا جو مقابل میں کھڑا ہے ٠

کب تک یہ فسانے ، یہ ہوا چھائی رہیگی 
ماضی کی سیاست کی وبا چی رہیگی ٠

سر پہ ہے کھڑا وقت ، چرھاۓ ہوئے تیور 
ہو جاۓ نہ محشر سے ہی پہلے کوئی محشر ٠ 

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