Sunday, June 30, 2019

जुंबिशें ग़ज़ल


  ग़ज़ल 

महरूमियाँ सताएँ न, नींदों की रात हो,
दिन बन के बार गुज़रे न, ऐसी नजात हो.

हाथों की इन लकीरों पे, मत मारिए छड़ी,
उस्ताद मोहतरम, ज़रा शेफ्क़त का हाथ हो.

यह कशमकश सी क्यूं है, बग़ावत के साथ साथ,
पूरी तरह से देव से छूटो, तो बात हो.

कुछ तर्क गर करें तो सुकून व् क़रार है,
ख़ुद नापिए कि आप की, कैसी बिसात हो.

उंगली से छू रहे हैं, तसव्वर की माह व् रू,
मूसा की गुफ़्तुगु में, ख़ुदाया सबात4 हो.

इक गोली मौत की मिले 'मुंकिर' हलाल की,
गर रिज़्क1 का ज़रीया2 मदद हो, ज़कात3 हो.

१-भरण-पोषण २-साधन ३-दान 4 तत्व 

محرومیاں ستائیں نہ، نیندوں کی رات ہو 
دن بار بن کے گزرے نہ ایسی نجات ہو٠ 

ہاتھوں کی ان لکیروں پہ، مت مارئے چھڑی، 
استادِ محترم زرہ شفقت کا ہاتھ ہو٠ 

یہ کشمکش سی کیوں ہے، بغاوت کے ساتھ ساتھ؟ 
پوری طرح سے دیو سے چھوٹو تو بات ہو٠ 

کچھ ترک گر کریں، تو سکون و قرار ہے 
خود ناپئے کہ آپ کی کیسی بساط ہو٠ 

اُنگلی سے چھو رہے ہیں، تصوّر کی وہ پری 
موسیٰ کی گُفتگو میں خدایا ثبات ہو. 

اک گولی موت کی کما منکر حلال کی 
گر رزق کا زریعہ مدد ہو، زکات ہو٠ 

Friday, June 28, 2019

जुंबिशें दोहे


दोहे 

तन सिंचित मोती जड़ित , मन मोहन मुस्कान ,
है सृजित शोभा गणित , अल्ला तेरी शान .

تن سنچت ، موتی جڑت ، من موہن مسکان  
ہے سرجت شوبھا گڑت ، اللہ تیری شان ٠ 
**
उपदेशों से न बनी , लाए ईश आदेश ,
शक्ति को भगती मिले , बने जो अध्यादेश .

اپدیشوں سے نا بنی ،لایں ایش آدیش 
شکتی کو بھکتی میل ، بنے جو ادھیا دیش ٠
***
दावत हक की लाएं हैं , खिला रहे हैं भूख ,
इनके उनके फ़िक्र में, खुद भी गए हैं सूख .

دعوت حق کی لاۓ ہیں ، کھلا رہے ہیں بھوک 
انکی انکی فکر میں خود بھی گئے ہیں سوکھ 
****
खोले अपना डाक घर , बैठा उपर खुदाए ,
ख़त ले आया डाकिया , मार मार पढवाए .

کھولے اپنا ڈاک گھر، بیٹھا اوپر خداۓ 
خط لے آیا ڈاکیہ ، مار مار پڑھواے ٠
*****
आ देखे शमशान को या फिर कब्रिस्तान ,
जीवन की सच्चाई चुन , ऐ भोले नादान .

آ دیکھیں شمشان کو یا پھر قبرستان 
جیون کی سچچائی چن ، ائے بھولے نادان 

Thursday, June 27, 2019

मुस्कुराहटें


मुस्कुराहटें 
टक्कर 

था तबअ1 आज़ाद दहकाँ2, शेख़ ए बातिल3 का था वाज़4,
मैं उसे सौ ऊँट दूंगा, जो पढ़े सौ दिन नमाज़.
पा के लालच ऊँट का, दहकाँ वह राज़ी हो गया,
गोया अगले रोज़ से, पाजी नमाज़ी हो गया.

सौ दिनों के वाद आए शेख़ जब उसके यहाँ,
बोले बेटा पास मेरे ऊँट और घोडे कहाँ,
तुझको कर देना नमाज़ी, बस मुझे दरकार था,
राह में मस्जिद के बस, तू ही खटकता ख़ार था.
शेख़ की वादा ख़िलाफ़ी पर था उसका ये जवाब,
बे वज़ू5 के मैंने भी, टक्कर लगाए हैं जनाब.

1 स्वतंत्र स्वभाव 2 किसान 3 झूठा मोलवी 4 संबोधन 5 शरीर शुद्ध करना 

ٹکّر 
تھا طبع آزاد دہقان ، شیخ باطل کا تھا واعظ 
"میں اسے سو اونٹ دونگا ، جو پڑھے سو دن نماز"  
کر کے لالچ اونٹوں کا، وہ شخص راضی ہو گیا
گویہ اگلے دن سے، وہ پاجی نمازی ہو گیا ٠

  سو دنوں کے بعد آئے، شیخ جب اسکے یہاں 
بولے بیٹا پاس میرے، اونٹ اور گھوڑے کہاں ٠ 
تجھ کو کر دینا نمازی، بس مجھے درکار تھا 
راہ میں مسجد کے اک، تو ہی کھٹکتا خار تھا ٠ 
شیخ کی وعدہ خلافی پر، یہ اسکا تھا جواب  
بے وضو کے میں نے بھی ، ٹکّر لگاۓ ہیں جناب ٠ 

Wednesday, June 26, 2019

क़तआत ٠जू,जुंबिशें


क़तआत
कसौटी 

ईमान को पाया है या ईमान लिया है?
मनवाया गया है कि इसे मान लिया है.
फटका है? पछोरा है? इसे छान लिया है?
लोगों के गढ़े देव को पहचान लिया है?

ایمان کی کسوٹی

ایمان کو پایا ہے ، یا ایمان لیا ہے
منوایا گیا ہے ، کہ اسے ماں لیا ہے 
پھٹکا ہے ؟ پچوڑا ہے ؟ اسے چھان لیا ہے؟
کس طرح گڑھے دیو کو پہچان لیا ہے ؟ ؟


पसीने  फूल 

हल पेट की गुत्थी थी, दहकाँ की बदौलत,
तन सर की मुहाफ़िज़ है, ये मज़दूर की मेहनत, 
दीवारों में लिपटी हुई आरिफ़ की दुआएँ,
है ताक़ पे अटकी हुई, आबिद की इबादत.
मुहाफ़िज़=संरक्षक , आरिफ़=आत्म ज्ञानी ,आबिद=उपासक 

پسینے کے پھول

عابد کی عبادت تھی کسی طاق میں اٹکی 
عارف کی دعا یں رہی ، دیوار میں چپکی 
دہقاں کی مشققت نے غذا پیٹ کو دی ہے
مزدور کی محنت نے تن و سر کی خبر لی ٠ 

दुआए ख़ैर 

ये ज़ातयाती फ़ितने, माहौलयाती सदमें,
ये दुश्मनी के नरगे़, ये नफ़रतों के रख़ने,
ऐ क़ूवत ए इरादी, इन से बचा के ले चल,
जब तक मेरी मुहिम में आफ़ाक़ियत न झलके.
ज़ातयाती=व्यक्ति गत ,क़ूवत ए इरादी=दृढ निश्चय  आफ़ाक़ियत=बुलंदी 

دعاءُ خیر 

یہ زاتیاتی سدمیں، ماحول یاتی فتنے 
یہ دُشمنی کے نرغے، یہ نفرتوں کے رخنے 
ائے قووتِ ارادی، ان سے بچا کے لے چل 
جب تک مری مُہم میں، آفاقیت نہ جھلکے٠   

Tuesday, June 25, 2019

जुंबिशें रुबाइयात


रुबाइयात

औलादें बड़ी हो गईं, अब उंगली छुड़ाएँ, 
हमने जो पढ़ाया है इन्हें, वो हमको पढ़ाएँ, 
हो जाएँ अलग इनकी नई दुन्या से, 
माँ बाप बचा कर रख्खें, अपना खाएँ.

اولادیں بڑی ہو گئیں ، اب اُنگلی چُھڑا یں 
ہم نے جو پڑھایا انہیں، وہ ہم کو پڑھا یں 
ہو جایں الگ انکی نئی دنیا سے 
ماں باپ بچا کر رکھیں ، اپنا کھا یں٠  


कुछ ज़ीने उरूजों के हैं, लोगो चढ़ लो,
रह जाओगे पीछे, जरा आगे बढ़ लो, 
चश्मा है अक़ीदत का उतारो इसको, 
मत उलटी किताबें पढ़ो, सीधी पढ़ लो.

کچھ زینے عُروجوں کے ہیں ، یارو چڑھ لو 
رہ جاؤگے پیچھے ، ذرہ آگے بڑھ لو
چشمہ ہے عقیدت کا ، اُتارو اس کو 
مت سیدھی پڑھو انکو ، اُلٹی پڑھ لو ٠ 


है मुक्ति का अनुमान, जनम अच्छा है,
जन्नत के है इमकान, भरम अच्छा है, 
कहते हैं सभी मेरा धरम अच्छा है,
आमाल हैं अच्छे, न करम अच्छा है. 

ہے مُکتی کا انُومان جنم اچھا ہے 
جنّت کے ہیں امکان ، بھرم اچھا ہے 
کہتے ہیں سبھی ، میرا دھرم اچھا ہے 
   اعمال ہیں اچھے ، نہ کرم اچھا ہے ٠ 

Sunday, June 23, 2019

जुंबिशें - नज़्में


दस्तक 

घूँघट तो उठा दे कभी, ऐ वहिदे मुतलक़1,
चिलमन पे खड़ा कब से हूँ, आमादए दस्तक.

बाज़ार तेरे ख़ैर की बरकत की लगी है,
अय्यार लगाए हैं दुकानें, जो ठगी है.

तुज्जार2 तेरी शक्लें हज़ारो बनाए हैं,
आपस में मुक़ाबिल भी हैं, तेवर चढ़ाए हैं.

अल्लाह बड़ा है, तू बड़ा है, तू बड़ा है,
शैतान है छोटा जो तेरे साथ खड़ा है.

कब तक यह फ़सानों की हवा छाई रहेगी,
माजी3  की सियासत की वबा छाई रहेगी.

सर पे है खड़ा वक़्त चढ़ाए हुए तेवर,
हो जाए न महशर4  से ही पहले कोई महशर.

अब सोच को बदलो भी क़दामत के पुजारी,
मुंकिर तभी संवरेगी ज़रा नस्ल तुम्हारी. 

१-एकेश्वर २- व्यापारी ३-भूत काल ४-प्रलय 

دستک

گھُونگھٹ تو اُٹھا دے کبھی تو واحدِ مُطلعق 
بے چین یقیں ، دید کے در پہ ہے، بہ شدّت ٠

بازار ترے خیر کی ، برکت کی لگی ہے
عیاّر لگاۓ ہیں دکانیں ، جو ٹھگی ہے ٠

تجاّر تیری شکلیں ہزاروں بناۓ  
آپس میں مقابل ہیں یہ ، تیور چرھاۓ ٠

الله بڑا ہے ، تو بڑا ہے ، تو بڑا ہے 
شیطان ہے چھوٹا جو مقابل میں کھڑا ہے ٠

کب تک یہ فسانے ، یہ ہوا چھائی رہیگی 
ماضی کی سیاست کی وبا چی رہیگی ٠

سر پہ ہے کھڑا وقت ، چرھاۓ ہوئے تیور 
ہو جاۓ نہ محشر سے ہی پہلے کوئی محشر ٠ 

Friday, June 21, 2019

जुंबिशें --- ग़ज़ल


ग़ज़ल 

मख़लूक़ ए ज़माने1 की ज़रूरत को समझ ले,
बेहतर है इबादत से, तिजारत को समझ ले.

ऐ मर्द ए जवान साल, तू अब सीख ले उड़ना,
माँ-बाप की मजबूर किफ़ालत२ को समझ ले.

हुजरे3 में मसाजिद के, अज़ीज़ों को मत पढ़ा,
ग़िलमा४ के तलब गारों की, ख़सलत को समझ ले.

बारातों, ज़नाज़ों के लिए, चाहिए इक भीड़,
नादाँ तबअ५ उनकी, सियासत को समझ ले.

मनवा के "उसे" अपने को मनवाएगा वह शेख़,
यह दूर कि कौड़ी है, नज़ाक़त को समझ ले.

'मुंकिर' हो फ़िदा ताकि बक़ा6 हाथ हो तेरे,
मशरूत7 वजूदों की, शहादत को समझ ले.

१-जन साधारण २ -पालन-पोषण ३-कमरों 
४-सेवक बालक ५-सरल-स्वभाव ६-स्थायित्व ७- सशर्त

مخلوقِ زمانہ کی، ضرورت کو سمجھ لے 
بہتر ہے تجارت کو، عبادت تو سمجھ لے٠ 

اے مرد جواں سال، تو اب سیکھ لے اڑ نا 
ماں باپ کی مجبور، کفالت کو سمجھ لے٠

حجرے میں مساجد کے، عزیزوں کوپڑھا مت 
غلمہ کی طلب گاروں کی، خصلت کو سمجھ لے٠

منوا کے 'اُسے'، اپنے کو منواے گا وہ شیخ 
یہ دور کی کوڑی ہے، نزاقت کو سمجھ لے٠ 

منکر ہو فنا، تاکہ بقا ہاتھ ہو تیرے 
مشروط وجودوں کی شہادت کو سمجھ لے٠

Thursday, June 20, 2019

जुंबिशें --- दोहे

दोहे 
हाथन का फैलाए के , दीनेह खीस निपोर ,
कुत्ता भी शरमात है , जब मंगत है कौर .

ہاتھن کو پھیلاۓ کے ، دینوہ کھیس نپور 
کتا بھی شرمات ہے ، جب مانگت ہے کور ٠
*

तन की अग्नि से लड़ें , दिन भर जोगी राज ,
सपने को दोषी कहें , रात में हो जब काज .

 تن کی اگنی سے لڑیں ، دن بھر یوگی راج 
سپنوں کو دوشی کہیں ، رات مرن جب ہو کاج ٠ 
*

खाते समय न बोलिए , मुल्ला जी फरमाएँ ,
पशुवन की ये विधि भली , मानव भी अपनाएँ .

کھاتے سمے نہ بولئے ، ملا جی فرمایں 
پشون کی یہ ودھی بھلی ، مانو بھی اپنایں ٠


श्रद्धेय जी का हुक्म है , श्रोता गण जब आएँ ,
जूता छाता बुद्धि को , बाहर ही रख आएँ .

مہاراج کا حکم ہے ، شروتا گن جب آئین 
جوتا ، چھاتا ، بددھی کو بہار ہی رکھ آئین ٠
*


सब से मुंकिर राखियो , जय सिया राम सलाम ,
भिड जाए जब चूतिया , मुंह पर लगे लगाम .

سب سے 'منکر' راکھیو ، جے جے رام سلام 
کبھی نہ کیجیو چوٹیوں سے، لاجک بھرا کلام ٠ 

Wednesday, June 19, 2019

क़तआत ٠

क़तआत 
ठूंठ 

बातिल की बाग़ में हूँ किसी ठूंठ की तरह,
हर सांस पी रहा हूँ कड़े घूँट की तरह,
लादे हुए हूँ पीठ पर, सच्चाइयों का बोझ,
वीरान दश्त में हूँ , थके  ऊँट की तरह.
बातिल=मिथ्य ,दश्त=जंगल 

ٹھونٹھ
باطل کی باغ میں ہوں ، کسی ٹھونٹھ کی طرح 
ہر سانس پی رہا ہوں ، کڑے گھونٹ کی طرح،
لادے ہوئے ہوں پیٹھ پر ، سچائیوں کا بوج
ویران میں آ گیا ہوں ، کسی اونٹ کی طرح ٠

ओ सूरज 

लाखों बरस से किसके लिए जूझता है तू ,
गर्दिश के बंधनों से कभी ऊबता है तू ?,
ढो ढो के थक गया हूँ, ज़माने का बोझ मैं,
 सूरज मुझे बता, कि कहाँ डूबता है तू .

او سورج 
لاکھوں برس سے، کسکے لئے جوجھتا ہے تو 
گردش کے بندھنو سے، کبھی اوبتا ہے تو؟ 
ڈھو ڈھو کے تھک گیا ہوں زمانے کا بوجھ میں 
سورج مجھے بتا، کہ کہاں ڈوبتا ہے تو ؟


शर

कुछ लोग छोड़ते हैं मरने के बाद ज़र,
कुछ लोग छोड़ते हैं दीवार ओ दर का घर,
दीनो धरम के बानी फ़क़त छोड़ते हैं दिक़,
इंसानियत के हक में दीन ओ धरम का शर. 
शर=झगड़ा

وراثتیں 

کُچھ لوگ چھوڑتے ہیں مرنے کے بعد زر 
کچھ لوگ چھوڑتے ہیں دیوار و در کا گھر 
کیسی وراثتیں ہیں ان پیر و پیامبر کی 
انسانیت کے حق میں دین و دھرم کا شر٠ 

Monday, June 17, 2019

जुंबिशें -- रुबाइयात


रुबाइयात 
चाहे जिसे इज्ज़त दे, चाहे ज़िल्लत, 
चाहे जिसे ईमान दे, चाहे लअनत, 
समझाने बुझाने की मशक्क़त क्यों है? 
जब ख़ुद तेरे ताबे में है सारी हिकमत .

چاہے جِسے عزّت دے چاہے ذلّت 
چاہے جِسے ایمان دے چاہے لعنت 
سمجھقا نے بُجھانے کی مشقّت کیوں ہو 
جب خود ترے تعبے میں ہے ساری حِکمت ٠ 


जम्हूर में एहसास की पस्ती देखी, 
दौलत को अमीरों पे बरसती देखी,
दानों को तरसती हुई बस्ती देखी,
अ.फ्लास के साथ, मौज और मस्ती देखी.

جمہور میں احساس کی ، پستی دیکھی 
 دولت کو امیروں پہ،  برستی دیکھی 
دانوں کو ترستی ہوئی ، بستی دیکھی 
افلاس کے ساتھ ، موج اور مستی دیکھی ٠ 

जब गुज़रे हवादिस तो तलाशे है दिमाग, 
तब मय की परी हमको दिखाती चराग़, 
रुक जाती है वजूद में बपा जंग, 
फूल बन कर खिल जाते हैं दिल के सब दाग़. 

جب گزرے حوادث کو تلاشے یہ دماغ 
تب  مے کی پری ہم کو دِکھاۓ ہے چراغ 
رّک جاتی ہے وجود میں بپا جنگ 
پھول بن کر کِھل جاتے ہیں دل کے سب داغ ٠ 

Sunday, June 16, 2019

जुंबिशें - नज़्म --- अपील

 नज़्म

अपील

लिपटे-लिपटे सदियाँ गुज़रीं, वहेम् की इन मीनारों से,
मन्दिर, मस्जिद, गिरजा, मठ और दरबारी दीवारों से,
अन्याई उपदेशों से, और कपट भरे उपचारों से,
दोज़ख़, जन्नत की कल्पित, इन अंगारों,उपहारों से.

बहुत अनोखा जीवन है ये, इन पर मत बरबाद करो,
माज़ी के हैं मुर्दे ये सब, इनको मुर्दाबाद करो,
इनका मंतर उनका छू, निज भाषा में अनुवाद करो.
निजता का काबा काशी, निज चिंतन में आबाद करो.



اپیل

لِپٹے لِپٹے صدیاں گزریں، وهم کی ان دیواروں سے، 
مندر مسجد گرجا مٹھہ ، اور درباری دیواروں سے، 
اننیائی اُوپدیشوں سے اورکپٹ بھرے اُپچا روں سے،
دوزخ جنّت کی کلپیت ، انگاروں اُپہا روں سے٠   


بہت انوکھا جیون ہے یہ ، اِسکو مت برباد کرو،
ماضی کے مُردے ہیں یہ سب ، اِن کو مُردہ باد کرو، 
اِنکا منتر، اُنکا چهو ، نِج بھاشا میں انواد کرو٠ 
نِجتا کا کعبہ کاشی ، نِج چیتن میں آباد کرو٠ 
12

Friday, June 14, 2019

जुंबिशें -- ग़ज़ल

 ग़ज़ल
इस ज़मीं के वास्ते, मिल कर दुआ बन जाएँ हम,
रह गुज़र इंसानियत हो, क़ाफ़िला बन जाएँ हम.

क्यों किसी नाहक़ की, मरज़ी की रज़ा बन जाएँ हम, 
मुख़्तसर सी ज़िंदगी का, हादसा बन जाएँ हम.                                          

रद कर दो रहनुमाई की, ये नाहक़ रस्म को,
हो न क़ायद कोई अपना, क़ायदा बन जाएँ हम.

तुम ज़रा सी ज़िद को छोडो, हम ज़रा सी आन को.
क्या से क्या बन जाए ये घर, क्या से क्या बन जाएँ हम. 

अब महा भारत न उपजे, न फ़साद ए करबला,
शर के बुत को तोड़ कर, अमनी फ़िज़ा बन जाएँ हम. 

आख़िरी ज़ीने पे चढ़ कर, राज़ हस्ती का खुला,
इन्तेहा है क़र्ब मुंकिर, इब्तिदा बन जाएँ हम.


اس زمیں کے واسطے مل کر دعا بن جائیں ہم 
رہگزرانسانیت ہو، قافله بن جائیں ہم٠ 

کیوں کسی نا حق کی مرضی کی رضا بن جائیں ہم 
مختصر سی زندگی کا، حادثہ بن جائیں ہم٠

رد کر دو رہنمائی کی، یہ ناقص رسم کو، 
ہو نہ قاعد کوئی اپنا، قاعدہ بن جائیں ہم٠

تم ذرہ سی ضد کو چھوڑو، ہم ذرہ سی آن کو 
کیا سے کیا ہو جاۓ یہ گھر، کیا سے کیا ہو جائیں ہم٠ 

اب مہا بھارت نہ اُپجے، نہ فسادِ کربلہ 
شر کے بُت کو توڑ کر، امنی فضا بن جائیں ہم٠ 

آخری زینے پہ چڑھ کر راز ہستی کا کھلا 
انتہا ہے قرب منکر، ابتدا بن جائیں ہم٠

Thursday, June 13, 2019

जुंबिशें --- दोहे


दोहे 
सन्यासी सूफी बने, तो माटी पाथर खाए,
दूजी पीस पिसान को, काहे मांगन जाए।

سنیاسی صوفی بنے ، تو ماٹی پاتھر کھاۓ 
دوجی پیس پسان کو ، کاہے ماگن جاۓ ٠

--
माटी के तन पर तेरे, चढत है चादर पीर
बिन चादर के शीत में, मानव तजें शरीर.

ماٹی کے تن پر ترے ، چڑھت ہیں چادر پیر 
بن لتہ کے شیت میں ، مانو تجت شریر ٠
*


उनका अल्ला एक है , उसके नबी रसूल ,
पुख्ता ये ईमान है , ढीली हैं सब चूल .

انکا الله ایک ہے ، انکے نبی رسول 
پختہ یہ ایمان ہے ، ڈھیلی ہیں سب چول ٠
*

सर पे सूरज है खड़ा , अल्ला रख्खा जाग ,
मज़हब ही रुसवाई से,भाग सके तो भाग .

سر پی سورج ہے کھڑا ، اب 'منکر' تو جا گ 
مذہب کی رسوائی سے ، بھگ سکے تو بھاگ ٠
*


माँ बाप भाई बहन, रिश्ते सब ब्योपार ,
पत्नी पुत्री पुत्र पर, करके देख उधर . 

مائی ، باپ ،بھائی بہن ، رشتے سب بیوپار 
پتنی ، پتری ، پتر پر کرکے دیکھ ادھار ٠
*

Wednesday, June 12, 2019

जुबिo----मुस्कुराहटें


मुस्कुराहटें


पंडितो-मुल्ला -----

पंडितो-मुल्ला दो गहरे दोस्त थे इक चाल में,
खूब बनती, खूब छनती दोनों की हर हाल में,

एक दिन मुल्ला ये बोला, सुन कि ऐ पंडित महान!
बाँधता तू है ग़लत, पेशाब में अपने ये कान ?

सुन के पंडित ने कहा और वज़ू तेरा मियाँ?
गंध करता है कहाँ से ? साफ़ करता है कहाँ ?

तेरे मेरे आस्थाओं में ज़रा सा फ़र्क़ है,
मेरी कश्ती नर्क में है, तेरा बेडा ग़र्क़ है.

نہلے پر دہلا 

پنڈت و مللہ دو باہم، دوست تھے اک چال میں،
خوب بنتی ، خوب چھنتی ، دونوں کی ہر حال میں ٠ 
ایک دن مللہ نے پوچھا ، سن کہ ائے پنڈت مہان،
جاتا ہے پیشاب کو ، کیوں باندھتا ہے اپنے کان ؟
سن کے پنڈت نے کہا ، جیسے وضو تیرا میاں 
گندہ کرتا ہے کہاں سے اور دھوتا ہے کہاں ٠ 
*
ایک دن پنڈت نے چھیڑا، مللہ ائے قلب سیاہ 
جب ڈکاریں آتی ہیں ، علحمد کی لیتا ہے تھاہ 
پاس تیرے ہر گھڑی، اوسر کی ہوتی ہے دعا،     
ہے کوئی ایسی دعا ، جو بعد ہو خارج ، 
بولا ملا ہاں ! ہے نہ ائے کاشی نریش، 
ایسے موقعہ پر پڑھا کرتا ہوں میںجے جے گنیش ٠ 

Tuesday, June 11, 2019

जुबिसे --- रुबाइयात


 रुबाइयात  
ये ईश की बानी, ये निदा की बातें, 
आकाश से उतरी हुई ये सलवातें , 
इन्सां में जो नफ़रत की दराडें डालें, 
पाबन्दी लगे ज़प्त हों इनकी घातें. 

یہ ایش کی بانی ، یہ ندا کی گھاتیں  
آکاش سے اتری ہوئی یہ صلواتیں 
انسان میں نفرت کی دراڑیں ڈالیں 
پابندی لگے ، ضبط ہوں انکی باتیں٠ 
---------

कहते हैं कि मुनकिर कोई रिश्ता ढूंढो, 
बेटी के लिए कोई फ़रिश्ता ढूंढो, 
माँ   बाप के मेयार पे आएं पैग़ाम, 
अब कौन कहे, अपना गुज़िश्ता ढूंढो. 
--------

کہتے ہیں کہ منکر کوئی رشتہ ڈھونڈھو 
بیٹی کے لئے کوئی فرشتہ ڈھونڈھو 
ماں باپ کے اعمال پہ آئیں پیغام 
اب کون کہے اپنا گزشتہ ڈھونڈھو ٠
-------

लगता है कि जैसे हो पराया ईमान, 
या आबा व् अजदाद से पाया ईमान, 
या उसने डराया धमकाया इतना, 
वह खौ़फ़ के मारे ले आया ईमान. 
---------

لگتا ہے کہ جیسے ہو پرا یا ایمان 
یا باپ سے دادا سے، ہو پایا ایمان 
یا اُسنے ڈرایا دھمکایا اتنا 
وہ خوف کے مارے لے آیا ایمان ٠ 

Monday, June 10, 2019

जुबिसे --- अजम --- तुम - - -




तुम - - -

ख़ुद को समझ रहे हो, कि रूहे रवाँ1 हो तुम,
ख़िलक़त2 ये कह रही है, कि उसपे गराँ हो तुम.

सब फ़ारिग़ ए सलात3 अभी तक अजाँ हो तुम,
हर सम्त है बहार,  शिकार खिजाँ4 हो तुम.

क्यूँ चाहते हो, अपना यकीं सब पे थोप दो,
है भूत आस्था का, वहीं पर जहाँ हो तुम.

फ़रदा5 की कोख में हैं, सभी हल छिपे हुए,
माज़ी6 सवार सम्त, मुख़ालिफ़7 रवाँ हो तुम.

सर जिस्म पर ज़रूर है, रूहों का क्या पता ?
सर का ख़याल पहले करो, नातवाँ8 हो तुम.

शिद्दत9 है, जंग जूई10, बेएतदाली11 है,
आपस में लड़ रहे हो, जहाँ इम्तेहाँ हो तुम.

महकूम12 गर हुए, तो रवा दारी13 चाहिए,
कुछ और ही लगे हो, जहाँ हुक्मराँ14 हो तुम.

कुछ ऐसे बन सको, कि तुम्हारी हो पैरवी,
दुन्या गवाह हो, कि उरूज ए जहाँ15 हो तुम.

'मुंकिर' जगा रहा है, उठो मर्तबा16 वालो,
इक्कीसवीं सदी में, जहाँ है, कहाँ हो तुम.

1-प्राण-वर्धक २- अन्तर राष्ट्रिय जन समूह ३-नमाज़ अदा कर चुकना 
४-पतझड़ ५-आनेवाला कल ६-अतीत ७-उल्टी दिशा ८ -कमजोर
 ९-उग्रता १०-युद्धाभियान ११-असंतुलन १२-आधीन 
१३ -उचित बर्ताव १४-शाशक१५- दुन्या ऊपर १६-श्रेरेष्ट

تُم 

خود کو سمجھ رہے ہو ، کہ روحِ رواں ہو تم 
خِلقت یہ کہ رہی ہے کہ ، اُس پہ گراں ہو تم ٠

سب فارغِ صلات ، ابھی تک اذاں ہو تم 
ہر سمت ہے بہار ، شِکار خزاں ہو تم ٠

کیوں چاہتے ہو اپنا یقیں سب پہ تھوپ دو 
ہے بھوت آستھا کا وہیں پر، جہاں ہو تم ٠

فردہ کے کوکھ میں ہیں ، سبھی حل چُھپے ہوئے
ماضی سوار ، سمت مخالف رواں ہو تم ٠

سر جِسم پر ضرور ہے روحوں کا کیا پتہ 
اِس کا خیال پہلے کرو، ناتواں ہو تم ٠

شِدّت ہے ، جنگ جوئی ہے ، اعتدالی ہے 
آپس میں لڑ رہے ہو ، جہاں امتحاں ہو تم ٠

محکوم جب ہوئے تو ، روا داری چاہئے 
کچھ اور ہی لگے ہو ، جہاں حکمراں ہو تم ٠

کچھ ایسے بن سکو ، کہ تمہاری ہو پیروی 
دُنیا گواہ ہو کہ ، عروجِ جہاں ہو تم ٠

منکر' جگا رہا ہے اُٹھو ! اہل مرتبہ ،'
اِکیسویں صدی میں جہاں ہے ، کہاں ہو تم ٠   

---

Sunday, June 9, 2019

जुंबिशें - ग़ज़ल



ग़ज़ल  

हक्क़ुल इबाद से ये, लबरेज़ है न छलके,
राह ए अमल में थोड़ा, मेरे पिसर संभल के.

ऐ शाख़ ए गुल निखर के, थोड़ा सा और फल के,
अपने फलों को लादे, कुछ और थोड़ा ढल के.

अपने ख़ुदा को ख़ुद मैं, चुन लूँगा बाबा जानी,
मुझ में सिन ए  बलूग़त, कुछ और थोड़ा झलके.

लम्हात ज़िन्दगी के, हरकत में क्यूँ न आए,
तुम हाथ थे उठाए, चलते बने हो मल के.

कहते हो उनको काफ़िर  जो थे तुम्हारे पुरखे,
है तुम में ख़ून उनका, लोंडे अभी हो कल के.

मेहनत कशों की बस्ती, में बेचो मत दुआएँ,
"मुंकिर" ये पूछता है, तुम हो भी कुछ अमल के.

हक्कुल इबाद =मानव अधिकार

حق العباد سے یہ، لبریزہے، نہ چھلکے 
گامِ عمل میں تھوڑا، میرے پِسر سنبھل کے٠ 

ائے شاخِ گل سنبھل کے، تھوڑااور پھل کے 
اپنے پھلوں کو لادے، رہنا زرہ سا ڈھل کے٠ 

اپنے خدا کو خود میں، چُن لونگا بابا جانی 
مجھ میں سنِ بلوغت، تھوڑا سا اور جھلکے٠ 

لمحاتِ زندگی کے، حرکت میں کیوں نہ آے؟ 
تم ہاتھ تھے اُٹھاۓ، چلتے بنے ہو مل کے٠ 

ہے تم میں خون اُنکا، لونڈے ابھی ہو کل کے٠ 

محنت کشوں کی بستی، میں بیچو مت دعا ئیں 
منکر یہ پوچھتا ہے، تم ہو بھی کچھ عمل کے ٠ 

Friday, June 7, 2019

जुंबिशें - भतीजे के नाम


मुस्कुराहटें
भतीजे के नाम 

मत आना इन के जाल में ऐ मेरे भतीजे,
अ.क्साम ए ख़ुदा सब हैं क़यासों के नतीजे.

जो बात तुझे लगती हो फ़ितरत के मुख़ालिफ़,
उस बात पे हरगिज़ न मेरे लाल पसीजे.

जालों को बिछाए हैं ये रिश्तों के शिकारी,
बहनें हों कि भाई हों कि साले हों कि जीजे.

मिट्टी को निजी चाक के तू  कर दे हवाले,
माँ बाप की मुट्ठी तो रहेगी तुझे मींजे.

दिखला दे ज़माने को तेरा रंग ही जुदा है,
टक्कर में तेरे कोई भी दूजे हैं न तीजे.
अ.क्साम =क़िस्में

بھتیجے کے نام 

مت آنا انکے جال میں ایے میرے بھتیجے 
اقسام ے خدا ہیں یہ  قیاسوں کے نتیجے٠  

جو بات تجھے لگتی ہو فطرت کے مخالف 
اس بات پہ  ہرگز نہ میرے لعل پسیجے٠  

جالوں کو بچھاۓ ہیں یہ رشتوں کے شکاری
بہنیں ہوں کہ بھائی ہوں کہ سالے ہوں کہ جیجے٠  

مٹتی کو نجی چاک کے تو کر دے حوالے 
ماں باپ کی مٹھی تو رہیگی تجھے مینجے٠  

دکھلا دے زمانے کو تیرا رنگ ہی جدا ہے 
ٹکّر میں تیرے کوئی بھی دوجے ہیں نہ تیجے٠  

***

Thursday, June 6, 2019

दोहे


दोहे 
तुलसी बाबा की कथा, है धारा प्रवाह ,
राम लखन के काल के, जैसे होएं गवाह।

تلسی بابا کی کتھا ، ہے دھارا  پرواہ 
رام لکھن کے کال کے جیسے ہوئے گواہ ٠

**
गांधी कलि-युग में हुए अजब हैं ये अवतार,
मार काट से दूर हैं, तीर है न तलवार।

گاندھی کلیگ میں ہوئے ، عجب ہیں یہ اوتار
مار کاٹ سے دور ہیں ، تیر ہے نہ تلوار ٠

***

घृणा मानव से करे, करे ईश से प्यार,
जैसे छत सुददृढ़ करै, खोद खोद दीवार।

گھرنا مانو سے کرے ، کرے ا یش سے پیار 
جیسے چھت سددرڑھ کرے ، خود خود دیوار ٠

****

कित जाऊं किस से मिलूँ, नगर-नगर सुनसान,
हिन्दू-मुस्लिम लाख हैं, एक नहीं इंसान।

کت جوں کس سے ملوں ، نگر نگر سنسان 
ہندو مسلم لاکھ ہیں ، ایک نہیں انسان ٠
*****

कृषक! राजा तुम बनो, श्रमिक बने वज़ीर,
शाषक जाने भाइयो, बहु संख्यक की पीर।

کرشک تم راجہ بنو ، شرامک بنے وزیر 
شاشک جانے بھائیو ، بہو سنکھیک کی پیر ٠
*

Wednesday, June 5, 2019

क़तआत ٠जुंबिशें


क़तआत 
इन्फ़िरादियत 
जब शरअ इज्तेहाद पे हो जाएगी क़ज़ा,
जब फिर से फ़र्द पूजेगा अपना ही इक ख़ुदा,
जब छोड़ देगी फ़र्द को यह इज्तेमाइयत,
इंसान जा के पाएगा तब अपना मर्तबा.  
इन्फ़िरादियत=अनुपमता इज्तेहाद=सुधार,
फ़र्द=व्यक्ति,इज्तेमाइयत=समूह ,मर्तबा=महिमा  

انفرادیت 
جب شرع اجتہاد پہ ہو جایگی قضا 
جب پھر سے فرد پوجیگا اپنا ہی اک خدا 
جب چھوڑ دیگی فرد کو یہ اجتماعیت 
انسان جا کے پاےگا تب  اپنا مرتبہ٠  

*
अजीब बन्दा 

सर झुकाए हुए ही चढ़ता है,
कुछ इबारत ज़मीं की पढ़ता है,
उस से भिड़ना बड़ा ही मुश्किल है,
सारे इलज़ाम ख़ुद पे मढ़ता है. 

عجیب بندہ 

سر جھکاے ہوئے ہی چلتا ہے
کچھ عبارت زمیں کی پڑھتا ہے
اس سے بھڑنا بڑا ہی مشکل ہے 
سارے الزام خود پہ مڑھتا ہے٠ 

**
डिजाइन 

मायूस हुवा मुंकिर तब उनको हँसी आई,
मह्जूज़ हुवा मुंकिर तब उनको हँसी आई,
टाइम का डिज़ाइन है पल भर के तवक़्क़ुफ़ में,
मारूफ़ हुवा मुंकिर तब उनको हँसी आई.
मह्जूज़=ख़ुश,तवक़्क़ुफ़=क्षणिक,मारूफ़=पहचान 

ڈیزائن

مایوس ہوا منکر تب انکو ہنسی آئ 
محظوظ ہوا منکر تب انکو ہنسی آئ 
ٹائم کا ڈیزائن ہے پل بھر کے توقف میں، 
معروف ہوا منکر تب انکو ہنسی آئ٠ 

Tuesday, June 4, 2019

ईद की महरूमियाँ



ईद की महरूमियाँ 1

कैसी हैं ईद की ख़ुशियाँ, यह नक़ाहत की तरह,
जश्न क़र्ज़े की तरह, नेमतें क़ीमत की तरह.
ईद का चाँद ये, कैसी ख़ुशी को लाता है,
घर के मुखिया पे नए पन के सितम ढाता है.

ज़ेब तन कपड़े नए हों तो ख़ुशी ईद है क्या?
फ़िक्र-ए-गुर्बा के लिए हक़ की ये ताईद है क्या?
क़ौम पर लअनतें हैं फ़ित्रा व् ख़ैरात व् ज़कात ,
ठीकरे भीख की ठंकाए है, उमरा की जमाअत.

पॉँच वक़तों  की नमाज़ें हैं अदा रोज़ाना,
आज के रोज़ अज़ाफ़ी है सफ़र दोगाना.
इसकी कसरत से कहीं दिल में ख़ुशी होती है,
भीड़ में ज़िन्दगी तनहा सी पड़ी होती है.

ईद के दिन तो नमाज़ों से बरी करना था,
छूट इस दिन के लिए मय-ब-लबी करना था.
नव जवाँ देव परी के लिए मेले होते,
अपनी दुन्या में दो महबूब अकेले होते.

रक़्स होता, ज़रा धूम धड़ाका होता,
फुलझड़ी छूटतीं, कलियों में धमाका होता.
हुस्न के रुख़ पे शरीयत का न परदा होता,
मुत्तक़ी१०,पीर, फ़क़ीहों११, को ये मुजदा१२, होता.

हम सफ़र चुनने की यह ईद इजाज़त देती,
फ़ितरते ख़ल्क़१३ को संजीदगी फ़ुर्सत देती.
ईद आई है मगर दिल में चुभी फांस लिए,
क़र्बे१४ महरूमी लिए, घुट्ती हुई साँस लिए.

१-वनचित्ता २-कमजोरी ३-गरीबों की चिंता ४-ईश्वर 5-समर्थन 
६-दान की विधाएँ ७-धनाड्य ८-ईद की नमाज़ को दोगाना कहते ९-धर्मं विधान 
१०-सदा चारी  11-धर्म-शास्त्री १३-खुश खबरी १3-जीव प्रवर्ति14-वंचित की पीड़ा

*
عید کی محرومیاں

کیسی ہیں عید کی خوشیاں ، یہ نقاہت جیسی 
جشن قرضے کی طرح ، نعمتیں قیمت جیسی 
عید کا چاند ، خوشی لےکے کہاں آتا ہے ؟
گھر کے مکھیہ پہ ، نئے پن کے ستم ڈھاتا ہے ٠

زیبِ تن کپڑے نئے ہوں ، تو خوشی عید ہے کیا ؟
فکرِ غربہ کے لئے ، حق کی یہ تائید ہے کیا ؟
قوم کی لعنتیں ہیں ، فطرہ و خیرات و زکات 
ٹھیکرے بھیکھ کے ، ٹھنکاتی ہے عمرہ کی جماعت ٠

پانچ وقتوں کی نمازیں ہیں ادا روزانہ 
آج کے روز اضافی ہے ، سفرِ دوغانا 
ان کی کثرت سے ، کہیں کوئی خوشی ملتی ہے ؟
اس کی ییاری میں ہی ، نصف صدی لگتی ہے ٠

آج کے دن تو نمازوں سے بری کرنا تھا 
چھوٹ اس دن کے لئے مے بہ لبی کرنا تھا 
نو جواں دیو و پری کے لئے میلے ہوتے 
محوِ انفاس میں ہر جوڑے اکیلے ہوتے ٠

ان چھئے جسم ، نئے لمس کی لذّت پاتے 
انتخباتِ نظر ، رتبۂ فطرت پا تے 
حسن کے رخ پہ ، شریعت کا نہ پردہ ہوتا 
متقی ، پیر ، فقیہوں کو یہ مژدہ ہوتا ٠

ہم سفر چننے کی ، یہ عید اجازت دیتی 
فطرت خلق کو ، سنجیدگی فرست دیتی 
عید آئ ہے ، مگر دل میں چبھی پھانس لئے 
قربِ محرومی لئے ، گھٹتی ہوئی سانس لئے ٠ 
**