कतआत
इमकानी हदें
गर काम भला हो तो, कुदरत की मदद है,
हाँ याद रखें, जेहद के आलम में जो क़द है,
सुस्ता लें ज़रा देर, अगर थक जो गए हों,
नाकाम नतीजों में ही, इमकान की हद है।
गोचा पेची
सब कुछ तो साफ़ साफ़ था इरशाद ए किबरिया ,
तफ़सीर लिखने वालो! बताओ ये क्या किया ,
कैसे अवाम पढ़ के, उठाएँगे फायदे ?
तुमने लिखे हुए पे ही, कुछ और लिख दिया .
इन्फ़िरादियत
जब शरअ इज्तेहाद पे हो जाएगी क़ज़ा ,
जब फिर से फ़र्द पूजेगा अपना ही इक ख़ुदा ,
जब छोड़ देगी फ़र्द को यह इज्तेमाइयत ,
इंसान जा के पाएगा तब अपना मर्तबा .
दिवाली की शुभकामनाएं
ReplyDeleteनई पोस्ट हम-तुम अकेले