रुबाइयाँ
कहते हैं कि मुनकिर कोई रिश्ता ढूंढो,
बेटी के लिए कोई फ़रिश्ता ढूंढो,
माँ बाप के मेयर पे आएं पैगाम,
अब कौन कहे , अपना गुज़िश्ता ढूंढो.
लगता है कि जैसे हो पराया ईमान,
या आबा ओ अजदाद से पाया ईमान ,
या उसने डराया धमकाया इतना ,
वह खौफ के मारे ले आया ईमान.
चाहे जिसे इज्ज़त दे, चाहे ज़िल्लत,
चाहे जिसे ईमान दे, चाहे लानत,
समझाने बुझाने की मशक्क़त क्यों है?
जब खुद तेरे ताबे में है सारी हिकमत .
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