ग़ज़ल
पश्चिम हंसा है पूर्वी, कल्चर को देख कर,
हम जिस तरह से हंसते हैं, बंदर को देख कर.
चेहरे पे नातवां के, पटख देते हैं क़ुरआन ,
रख देते हैं क़ुरआन, तवंगर को देख कर।
इतिहास मुन्तज़िर है, भारत की भूमि का,
दिल खोल के नाचे ये किसी नर को देख कर।
धरती का जिल्दी रोग है, इन्सान का ये सर,
फ़ितरत पनाह मांगे है, इस सर को देख कर।
यकता है वह, जो सूरत बातिन में है शुजअ,
डरता नहीं है ज़ाहिरी, लश्कर को देख कर।
झुकना न पड़ा, क़द के मुताबिक हैं तेरे दर,
"मुंकिर" का दिल है शाद तेरे घर को देख कर।
नातवां=कमज़ोर *तवंगर= ताक़तवर *फ़ितरत=पराकृति * बातिन=आंतरिक रूप में *शुजअ=बहादुर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार।