मुस्कान
पंडितो-मुल्ला -----
पंडितो-मुल्ला दो गहरे दोस्त थे इक चाल में,
खूब बनती, खूब छनती दोनों की हर हाल में,
एक दिन मुल्ला ये बोला , सुन कि ऐ पंडित महान!
बाँधता तू है ग़लत , पेशाब में बेचारे कान ?
सुन के पंडित ने कहा और वज़ू तेरा मियाँ,
गंध करता है कहाँ से ? साफ़ करता है कहाँ ?
तेरे मेरे आस्थाओं में ज़रा सा फ़र्क़ है,
मेरी कश्ती नर्क में है, तेरा बेडा ग़र्क़ है।
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सुन्दर प्रस्तुति।
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प्रकाशोत्सव के महापर्व दीपादली की हार्दिक शुभकानाएँ।