Friday, October 11, 2013

JUNBISHEN 85

क़ता  
ताजिर 

हर वक़्त फ़िक्र ए दौलत , बस खाता और बही है ,
रहती है ये कुएँ में , ताजिर की ज़िंदगी है ,
दुन्या की सारी क़दरें , गुम हो गईं हैं इनमें ,
दौलत ही दुःख है इनका , दौलत ही हर ख़ुशी है .


फ़ितरी लम्हे 

फ़ितरत ए वहशी जवाँ थी , नातवाँ फ़िक्र ए गुनाह ,
हुस्न का आतश फशां था , थी न कोई सर्द राह ,
पिघली यूँ ज़ंजीर ए तक़वा , खौफ़ पत्थर का था छु ,
लिख भी दे कोई सज़ा , ऐ जज़ाए फ़ितना गाह .


अना 

इस अना को सुपुर्द ए क़ब्र करो ,
है ये बेहतर की खुद पे जब्र करो ,
बाद में वह भी ज़िद को छोड़ेगा ,
भाई मुंकिर ! ज़रा सा सब्र करो . 

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