Sunday, October 6, 2013

junbishen 83


ग़ज़ल 

खेमें में बसर कर लें, इमारत न बनाएँ,
जो दिल पे बने बोझ, वो दौलत न कमाएँ।

सन्देश ये आकाश के, अफ़लाक़ी निदाएँ,
हैं इन से बुलंदी पे, सदाक़त की सदाएँ।

सच्ची है ख़ुशी, इल्म की दरया को बहाएँ,
भर पूर पढें, और अज़ीज़ों को पढ़ाएँ।

संगीन के साए में हैं, रहबर कि ख़ताएँ,
मज़लूम के हिस्से में, बिना जुर्म सज़ाएँ।

तीरथ कि ज़ियारत हो,कोई पाठ पढ़ाएँ,
जायज़ है तभी, जब न मोहल्ले को सताएँ।

जलसे ये मज़ाहिब के, ये धर्मों कि सभाएँ,
"मुंकिर" न कहीं देश की, दौलत को जलाएँ।

*अफ्लाकी निदाएँ=कुरान वाणी *सदाक़त=सत्य वचन *ज़ियारत=दर्शन .

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