Saturday, October 12, 2013

junbishen 86


दोहे 


कुदरत ही है आईना, प्रक्रति ही है माप, 
तू भी इसका अंश है, तू भी इसकी ताप. 


'मुंकिर' हड्डी मॉस का, पुतला तू मत पाल।
तन में मन का शेर है, बाहर इसे निकाल॥


अन्तर मन का टोक दे, सबसे बड़ा अज़ाब,
पाक साफ़ रोटी मिले , सब से बड़ा सवाब।


दिन अब अच्छे आए हैं , क़र्ज़ा देव चुकाए ,
ऐसा हरगिज़ मत किहौ , यह बच्चन पर जाए .


'मुंकिर' अपनी सोंच में, पाले है शैतान ,
बात सुनी शैतान ने , बहुत हुवा हैरान . 

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