Monday, April 1, 2019

जुंबिशें --- नज़्म ख़्वाहिशे पैग़म्बरी


नज़्म

ख़्वाहिशे पैग़म्बरी

जी में आता है कि मैं भी, इक ख़ुदा पैदा करुँ,
पहले जैसों ही, सदाक़त1 में रिया2 पैदा करुँ.

कुछ ख़ता पैदा करुँ, फ़िर कुछ सज़ा पैदा करुँ,
मौत से पहले ही इक, यौमे जज़ा3 पैदा करुँ.

आऊँ और जाऊं पहाडों पर, निदा4 के वास्ते,
वह्यी5 सी, या देव वाणी सी, सदा पैदा करुँ.

गढ़ के इक हुलिया निकालूँ , ख़ुद को इस मैदान में,
सब से हट कर इक अनोखी ही अदा पैदा करुँ.

मुह्मिलों6 में फ़लसफ़े राग माले डाल कर,
आश्रम में रख के, अपना बुत गिज़ा पैदा करुँ.

उफ़! कि दिल के क़ैद ख़ामें है 'मुंकिर' का ज़मीर,
कैसे मासूमों के ख़ातिर, मैं दग़ा पैदा करुँ.

१-सत्य २-मिथ्य ३-प्रलय के बाद इनाम पाने का दिन
 ४-आकाशवाणी ५-ईश्वानी ६- अर्थ हीन और अनरगल 

خواہشِ پیغمبری

جی میں آتا ہے کہ ، میں بھی اک خُدا پیدا کروں
پہلے جیسوں ہی ، صداقت میں رِیا پیدا کروں٠

کچھ خطا پیدا کروں ، پھر کچھ سزا پیدا کروں
موت سے پہلے ہی، اِک یومِ جزا پیدا کروں٠

آؤں  اور جاؤں پہاڑوں پر ، ندا کے واسطے
وحیی سی یا دیو وانی ، سی صدا پیدا کروں٠ 

گڑھ کے اک حلیہ نکالوں ، خود کو اس میدان میں
سب سے بڑھ کر، اِک انوکھی ہی ادا پیدا کروں٠

مُحملوں میں فلسفے کے ، راگ مالے ڈال کر
آشرم میں رکھ کے ، اپنا بُت غذا پیدا کروں٠

اُف ! کہ دل کے قید خانے میں ، ہے 'منکر' کا ضمیر
کیسے معصوموں کی خاطر ، میں دغا پیدا کروں٠ 

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