Friday, April 12, 2019

ग़ज़ल

ग़ज़ल 

हैं मसअले ज़मीनी, हलहाए आसमानी,
नीचे से बेख़बर है, ऊपर की लन तरानी.

फ़रमान सीधे सादे, पुर पेच तर्जुमानी,
उफ़! क़ूवते समाअत* उफ़! हद्दे बे ज़ुबानी.

ना जेबा तसल्लुत1 है, बेजा यक़ीं दहानी2,
ख़ुद बन गई है दुन्या, या कोई इसका बानी.

मैं सच को ढो रहा था, तुम क़ब्र खोदते थे,
आख़िर ज़मीं ने उगले, सच्चाइयों के मअनी.

कर लूँ शिकार तेरा, या तू मुझे करेगा,
बन जा तू ईं जहानी3, या बन जा आँ जहानी4.

ईमान ए अस्ल शायद, तस्लीम का चुका है,
वह आग आग हस्ती, "मुंकिर" है पानी पानी.

* श्रवण-शक्ति १-लदान २-विशवास दिलाना ३-इस जहान के ४-उस जहान के

ہیں مسئلے زمینی، حل ہاۓ آسمانی 
نیچے سے بے خبر ہے، اوپر کی لَن ترانی٠ 

فرمان سیدھے سادے، پر پیچ ترجُمانی
اُف قووت سماعت، اُف حدِ بے زبانی٠ 

نا زیبہ تسلّط ہے، بے جہ یقیں دہانی 
خود بن گئی ہے دُنیا، یا کوئی اِسکا بانی٠ 

میں سچ کو ڈھو رہا تھا، تم قبر کھودتے تھے 
آخر زمیں نے اُگلے، سچائیوں کے معنی٠ 

کر لووں شکار تیرا، یا تو مجھے کریگا؟ 
بن جا تو ایں جہانی، یا بن جا آں جہانی ٠ 

ایمانِ اصل شاید تسلیم کر چکا ہے 
وہ آگ آگ ہستی منکر ہے پانی پانی٠ 

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