Tuesday, April 2, 2019

जुंबिशें - - - नज़्म ग़ुबार


नज़्म 

ग़ुबार 

कुछ फ़ी सदी तरक्क़ी, हिदोस्तां की यारों,
धर्मों ने खा लिया है, मज़हब ने पी लिया है.
लम्हे मशक़्क़तों के, बर्बाद हो रहे हैं,
सजदों में जा रहे हैं, घन्टे बजा रहे हैं. 

ज्योतिष पे न्यूँ डाले, हर झूट को संभाले,
तंज़ीमें बन रही हैं, ज़हरें उगल रही हैं.
टी वी के चैनलों पर ये राम भरोसे हैं,
विज्ञानी थालियों में, अज्ञान परोसे हैं.

बनते जगत गुरु हैं, दुन्या में ज़र्द रू हैं. 
इनके शरण न जाओ, पहचान अपनी पाओ.
धर्मो का विष त्यागो, धर्मो से दूर भागो.
सच के गगन पे छाओ , विज्ञान को निभाओ.

धरती के कुछ नियम हैं, ये धर्म बस भरम हैं.
ख़ुद अपने में बशर है, सब ख़ुद पे मुनहसर है .
मज़हब है एक साज़िश, समझो मेरी गुज़ारिश,
बाहर से ये भले हैं, अन्दर से खोखले हैं.

धर्मी मेरे अमल हों, सच्चाई पर अटल हों,
लालच न फ़ायदे हों, डर हो न दबदबे हों.
हम ऐसे मुस्कुराएँ, मुजरिम न ख़ुद को पाएँ 
हर चेहरे पर ख़ुशी हो, आबाद ज़िन्दगी हो.

गर अपना देश भारत, धर्मों से पाक होता,
पश्चिम हमारे आगे, जूती की ख़ाक होता.
होती गराँ न रोटी, छत और ये लंगोटी.
मय नोश हम भी होते, बा होश हम भी होते.

शीशे के घर में रहते, ये मुफ़लिसी न सहते.
तालीम होती लाज़िम, हम होते सब मुलाज़िम.
घर बिजली मुफ़्त होती, हम को भी कार ढोती.
पाखंड न राज करता, सच सजता और संवरता.

दहकाँ शबाब पाता, मज़दूर गुनगुनाता,
जोगी ये नर न बनता, मज़मून पर निखरता,
न गुंडा राज होता, सच्चे पे ताज होता.
धर्मो ने मार डाला, मज़हब ने डाका डाला.

ऐ साकिनान भारत, थोड़ी सी ही जिसारत,
है वक़्त जाग जाओ, मत झूट को निभाओ,
अमरीका मुन्तज़िर है, योरोप को आस फिर है,
तुम पूरे सो जो जाओ, बस धर्म को बचाओ,
वह तुम को जाम कर दें, फिर से ग़ुलाम कर दें.

غبار  
کچھ فی صدی تراققی ، ہندوستاں ہی یارو 
دھرموں نے کھا لیا ہے ، مذہب نے پی لیا ہے ٠ 
لمحے مشققتوں کے برباد ہو رہے ہیں  
سجدوں لوگ غلطاں ، گھنٹے بجا کے مستاں ٠ 
جیوتش پہ نیوں ڈالے ، ہر جھوٹ کو سنبھالے 
دھرموں کا آگمان ہے ، آبھاس کا ندھن ہے ٠ 
ٹی وی کے چینلوں پر ، بھگوان کے بھروسے 
وگگیانی تھالیوں میں ، اگگیاں کو پر وسے ٠ 
کردار کچھ نہیں ہے ، معیار کچھ نہیں ہے 
بنتے جگت گرو ہیں ، دنیا میں زرد رو ہیں ٠ 
اب نہ کبیر ہوگا ، کوئی نہ ویر ہوگا 
مذہب ہے ایک سازش ، انسانیت پہ خارش٠ 
دھرتی کے کچھ نیم ہے ، یہ دھرمباس بھرم ہیں٠ 
*
خود اپنے پہ بشر ہے ، سب خود پہ منحصر ہے
دین و دھرم نہ ہوتے ، پھوٹے کرم نہ ہوتے٠ 
انکے شرن نہ جاؤ ، پہچان اپنی پاؤ 
دھرموں زہر تیاگو ، مذہب سے دور بھا گو٠ 
دھرمی میرے عمل ہوں ، سچائی پر اٹل ہوں 
لالچ نہ فائدے ہوں ، ڈر ہوں نہ دبدبے ہوں٠ 
ہم ایسے مسکرایں ، مجرم نہ خود کو پایں٠ 
گر اپنا دیش بھارت ، دھرموں سے پاک ہوتا 
پشچم ہمارے آگے جوتی کی خاک ہوتا٠ 
ہوتی نہ دور روٹی ، دکھتی نہ یہ لنگوٹی 
اے سی میں ہم بھی سوتے ، سب کے فلیٹ ہوتے٠ 
مے نوش ہم بھی ہوتے ، با ہوش ہم بھی ہوتے 
شیشوں کے گھر میں رہتے ، یہ مفلسی نہ سہتے٠ 
یہ بجلی مفت ہوتی ، ہم کو بھی کار ڈ ھوتی 
تعلیم ہوتی لازم ، سب ہوتے پھر ملازم٠ 

پاکھنڈ نہ راج کرتا ، سچ سجتا اور سنورتا 
دہقاں شباب پاتا ، مزدور گنگناتا 
کپٹی کوٹل نہ ہوتے ، یہ تنگ دل نہ ہوتے 
نہ گنڈا راج ہوتا ، ان پر نہ تاج ہوتا ٠ 
بے داغ چن کے آتے ، سچی خراج پاتے٠ 
اے ساکنان بھارت ، تھوڑی سی ہو جسارت 
ہے وقت جاگ جاؤ ، مت جھوٹ کو نبھاؤ٠ 
امریکہ منتظر ہے ، یوروپ کو آ س پھر ہے 
تم پورے سو جو جاؤ ، بس دھرم کو بچاؤ 
وہ تم کو جام کر دیں ، پھر سے غلام کر دن ٠ 

1 comment:

  1. कहीं और की पैदाइश कहीं और है बसेरा..,
    किस बेशर्म जबाँ से कहते ये हिन्द को मेरा..,


    मुल्कों को तक़सीम करना इनकी है रवायत..,
    जुल्मों जबह कर फिर करते है उसपे हुकूमत..,



    इनसे सियह बख्त है मिरे माज़ी का हर सबेरा..,
    किस बेशर्म जबाँ से कहते ये हिन्द को मेरा.....

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