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ग़ज़ल
अगर ख़ुद को समझ पाओ, तो ख़ुद अपने ख़ुदा हो तुम,
कहाँ किन किन के बतलाए हुओं में, मुब्तिला हो तुम.
है अपने आप में ही खींचा-तानी, तुम लड़ोगे क्या ?
इकट्ठा कर लो ख़ुद को, मुन्तशिर हो, जा बजा1 हो तुम.
मरे माज़ी2 का अपने, ऐ ढिंढोरा पीटने वालो!
बहुत शर्मिन्दा है ये हाल, जिस के सानेहा3 हो तुम.
तुम अपने ज़हर के सौग़ात को, वापस ही ले जाओ,
कहाँ इतने बड़े हो? तोह्फ़ा दो, मुझ को, गदा4 हो तुम.
फ़लक पर आक़बत 5 की, खेतियों को जोतने वालो,
ज़मीं कहती है इस पर एक, दाग़े बद नुमा हो तुम.
चलो वीराने में 'मुंकिर' कि फ़ुर्सत हो ख़ुदाओं से,
बहुत मुमकिन है मिल जाए ख़ुदाई भी, बजा हो तुम.
१-बिखरे हुए २-अतीत ३-विडम्बना ४-भिखरी ५-परलोक
اگر خود کو سمجھ پاؤ، تو خود اپنے خدا ہو تم،
کہاں کن کن کے بتلاۓ ہوؤں میں، مبتلا ہو تو٠
ہے اپنے آپ میں ہی کھینچا تانی، تم لڑوگے کیا،
اکٹّھا کر لو خود کو، منتشر ہو جا بجا ہو تو.
مَرے ماضی کا اپنے، ائے ڈھنڈھو را پیٹنے والو!
بہت شرمندہ ہے یہ حال، جس کا سانحہ ہو تو٠
تم اپنے زہر کے سوغات کو واپس ہی لے جاؤ،
کہاں اتنے بڑے ہو، تحفه دو، مجھ کو، گدا ہو تو٠
فلک پر عاقبت کی کھیتیوں کو جوتنے والو!
زمیں کہتی ہے اس پہ ایک داغِ بدنما ہو تو٠
چلو ویرانے میں منکر کہ فرصت ہو خداؤں سے،
بہت ممکن ہے مل جاۓ خدائی ہی، بجا ہو تو٠
वाह वाह बेमिशाल ग़ज़ल है
ReplyDelete>> माहो-अख्तर रखने की है औक़ात तो आसमाँ हो तुम..,
ReplyDeleteवर्ना तो एक मुश्ते ख़ाक का ज़र्द ज़र्रा हो तुम..,
रोजो करता है जफ़ा ज़ब्ह -ओ -जुल्मो सितम..,
उस कमज़र्फ आदमी कहते हो हाँ खुदा हो तुम.....
लाहौल बिलाकुव्वत