ग़ज़ल
तेरे मुबाहिसों का,ये लब्बो लुबाब है,
रुस्वाए हश्र* हैं सभी, तू कामयाब है.
आंखों पे है यक़ीन, न कानों पे एतबार,
सदियों से क़ौम आला$, ज़रा मह्व ए ख़्वाब है.
दुन्या समर भी पाए, जो चूसो ज़मीं का ख़ून,
जज़्बा ज़मीं का है, तो यह हरकत सवाब है.
अफ़सोस मैं किसी की, समाअत3 न बन सका,
चारो तरफ़ ही मेरे, सवालो जवाब है.
पुरसाने हाल बन के, मेरे दिल को मत दुखा,
मुझ में संभलने, उठने और चलने की ताब है.
दर परदा ए ख़ुलूस, कहीं सांप है छिपा,
'मुंकिर' है बूए ज़हर, यह कैसी शराब है.
रुस्वाए हश्र *=प्रलय के पापी $=इशारा मुसलमान ३-श्रवण शक्ति
تیرے مباحثوں کا یہ لب و لُباب ہے
رُسواے حشر ہیں سبھی، تو کامیاب ہے٠
آنکھوں پہ ہے یقین، نہ کانوں پہ اعتبار
صدیوں سے قومِ آلہ، ذرا محوِ خواب ہے٠
دنیا ثمر بھی پاۓ، جو چوسو زمین کا خون
جزبہ شجر کا ہے، تو یہ حرکت ثواب ہے٠
افسوس میں کسی کا سماعت نہ بن سکا
چارو طرف ہی میرے، سوال و جواب ہے٠
پُرسا ن حال بن کے میرے دل کو مت دُکھا
مجھ میں سنبھلنے،اٹھنے، سنورنے کی تاب٠
در پردہ خُلوص کہیں سانپ چھپا ہے
منکر ہے بوۓ زہر، یہ کیسی شراب ہے٠
No comments:
Post a Comment