Thursday, April 11, 2019

रुबाइयाँ


रुबाइयाँ
नाख़्वानदा व् जाहिल में बचेगा मज़हब,
नाकारा व् काहिल में बचेगा मज़हब,
बेदारों के कब्जे में समंदर होगा,
सीपी भरे साहिल पे बचेगा मज़हब.

نا خواندہ و جاہل میں بچینگے مذہب 
نا کارہ و کاحل میں بچینگے مذہب
بیداروں کے قبضے میں سمندر ہوگا 
سیپی بھرے ساحل بچینگے مذہب.

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हिस्सा है खिज़र का इसे झटके क्यों हो?
आगे भी बढ़ो राह में अटके क्यों हो ?
टपको कि बहुत तुम ने बहारें देखीं,
पक कर भी अभी डाल में अटके क्यों हो.

حصّہ ہے خضر کا، اسے جھٹکے کیوں ہو 
آگے بھی بڑھو ، راہ میں اٹکے کتوں ہو 
تپکو کہ بہت تھمنے بہاریں دیکھیں 
پک کر بھی ابھی ڈال میں اٹکے کیوں ہو 

***

दिल नदा व् इल्हाम से मुड़ जाता है
हक़ सनाशियों से वह जुड़ जाता है
देख कर यह पामाली ए सर ए इंसानी
मुनकिर का दिमाग़ भक से उड़ जाता है.

دل ندا و الہام سے مڑ جاتا ہے 
حق سناشیوں سے وہ جڑ جاتا ہے 
دیکھ کر یہ پامالی ے سرِ انسان 
منکر کا دماغ بہک سے اڑ جاتا ہے ٠ 

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