72
कभी कभी तो, मुझे तू निराश करता है,
मेरे वजूद में, ख़ुद को तलाश करता है.
मेरे वजूद का, ख़ुद अपना एक परिचय है,
सुधारता नहीं, तू इस को लाश करता है.
किसी इलाके के, थोड़े विकास के ख़ातिर,
बड़ी ज़मीन का, तू सर्वनाश करता है.
मैं होश में हूँ , हजारों कटार के आगे,
तुम्हारे हाथ का कंकड़, निराश करता है.
निसार जाँ से तेरी, इस लिए अदावत है,
तेरे ख़ुदाओं का, वह पर्दा फ़ाश करता है.
नशा हो शक्ति का, या हो शराब का 'मुंकिर" ,
नशे की शान है वह सर्व नाश करता है.
***
***
،کبھی کبھی تو مجھے تو نِراش کرتا ہے
مرے وجود میں خود کو تلاش کرتا ہے٠
،مرے وجود کا خود اپنا ایک پریچَے ہے
سُدھارتا نہیں تو اِسکو لاش کرتا ہے٠
،کسی علاقے کے تھوڑے وِکاس کے خاطر
بڑی زمیں کا تو سروناش کرتا ہے٠
،میں ہوش میں ہوں، ہزارو کٹار کے آگے
تمہارے ہاتھ کا کنکڑنرا ش کرتا ہے٠
،نثار جاں سے تری اس لئے عداوت ہے
ترے خداؤں کا وہ پردہ فاش کرتا ہے ٠
،نشہ ہو شکتی کا، یا ہو شراب کا منکر
نشے کی شان ہے، وہ سرو ناش کرتا ہے٠
No comments:
Post a Comment